Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ ( ५८ ) ने अपने मालिकों का पक्ष लिया, और जब वे स्वतन्त्र हो गये तो मालिकों की ही शरण में पहुँचे। गुलामी का ऐसा ही प्रभाव पड़ता है। ज़रा स्वतन्त्र नारियों से ऐसी बात कहिये - योरोप की महिलाओं से विधवाविवाह के विरोध करने का अनुरोध कीजिये -तब मालूम हो जायगा कि स्त्री हृदय क्या चाहता है ? हमारे देश की लज्जालु स्त्री छिपे छिपे पाप कर सकती हैं; परन्तु स्पष्ट शब्दों में अपने न्यायोचित अधिकार भी नहीं माँग सकतीं । एक विधवा से - जिसके चिन्ह वैधव्य पालन के अनुकूल नहीं थे - एक महाशय ने विधवाविवाह का ज़िकर किया तो उनको पचासों गालियाँ मिलीं, घर वालों ने गालियाँ दीं और बेचारों की वही फ़ज़ीहत की । परन्तु कुछ दिनों बाद वह एक श्रादमी के घर में जाकर बैठ गई ! इसी तरह हज़ारों विधवाएँ मुसलमानों के साथ भाग सकती हैं, भ्रूणहत्या कर सकती हैं, गुप्त व्यभिचार कर सकती है, परन्तु मुँह से अपना जन्म सिद्ध अधिकार नहीं माँग सकतीं । प्रायः प्रत्येक पुरुष को इस बात का पता होगा कि ऐसे कार्यों में स्त्रियां मुँह से 'ना', 'ना' करती हैं और कार्य से ' हाँ ', 'हाँ' करती हैं, इस लिये स्त्रियों के इस विरोध का कुछ मूल्य नहीं है । बहिन कल्याणी ने अपने पत्र में सीता सावित्री श्रादि की दुहाई दी है। क्या बहिन ने इस बात पर विचार किया है कि श्राज सैकड़ों वर्षों से उत्तर प्रान्तके जैनियों में विधवाविवाह का रिवाज बन्द है लेकिन तब भी कोई सीता जैसी पैदा नहीं हुई है? बात यह है कि पशुओं के समान गुलाम स्त्रियोंमें सीता जैसी स्त्री पैदा हो हा नहीं सकतीं, क्योंकि डंडे के बलपर जो धर्म का ढोंग कराया जाता है वह धर्म ही नहीं कहलाता है । बहिनका कहना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64