Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 58
________________ ( ५६ ) उन्हें विधवा बनने के लिये श्रातुर होना चाहिये - पति के मरने पर खुशी मनाना चाहिये; क्योंकि वे गुलामी से छूटी हैं; परन्तु ऐसा नहीं देखा जोता । हमारी समझ में स्त्रियाँ वैधव्य को अपने जीवन का सबसे बड़ा दुःख समझती हैं और पतिके साथ रहने को बड़ा सुख । समाज की दशा देखकर भी कहना पड़ता है कि जितनी गुलामी विधवा को करना पड़ती है उतनी सधवा को नहीं । सधवा एक पुरुष की गुलामी करती है, साथ ही में उससे कुछ गुलामी कराती भी है; परन्तु विधवा को समस्त कुटुम्ब की गुलामी करना पड़ती है। उसके ऊपर सभी श्राँख उठाते हैं, परन्तु वह किसीके साम्हने देख भी नहीं सकती। उस के आँसुओंका मूल्य करीब करीब 'नहीं' के बराबर हो जाता है । उसका पवित्र जीवन भी शंका की दृष्टि से देखा जाता है। अपशकुन की मूर्ति तो यह मानी ही जाती है। क्या गुलामी की जंजीर टूटने का यही शुभ फल है ? क्या स्वतन्त्रता के येही चिन्ह हैं। थोड़ी देर के लिये मान लीजिये, कि वैधव्य-जीवन बड़ा सुखमय जीवन है, परन्तु विधवाविवाह वाले यह कब कहते हैं कि जो विधवा-विवाह न करेगी वह नरक जायगी ? उनका कहना तो इतना ही है कि जो वैधव्य को पवित्रता से न पाल सके वे विवाह करलें ; क्योंकि कुमारी-विवाह के समान विधवाविवाह भी धर्मानुकूल है। किन्तु जो वैधव्य को निभा सकती हैं वे ब्रह्मचारिणी बने ! श्रार्थिका बने! कौन मना करता है ? विधवा विवाह के प्रचारक कोई जबर्दस्ती नहीं करते। वे धर्मानुकूल सरल मार्ग बताते हैं। जिसकी खुशी हो चले, न हो न चले। हाँ, इतनी बात अवश्य है कि ऐसी बहिनें गुप्त व्यभिचार और भ्रूण हत्याओं से दूर रहें। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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