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( ५६ ) है कि "विधवाविवाह के प्रचार से क्या सीता सावित्री के लिये अंगुल भर भी जगह बचेगी?" हमारा कहना है कि जहाँ धर्म के लिये अंगुल भर भी जगह नहीं है, वहाँ हाथ भर जगह निकाल लेने वाली ही सीता कहलातीहै । ज़बर्दस्ती या मौका न मिलने से ब्रह्मचर्य का ढोंग करने वाली यदि सीता कहलावे तोवेचारी सीताओं का कौड़ी भर भी मूल्य न रहे। सीता जी का महत्व इसी लिये है कि वे जंगल में रहना पसंद करती थीं और तीन खंड के अधिपति रावण की विभूतियों को ठुकराती थीं । जब सीता जी लंका में पहुँची और उन्हें मालूम हुआ कि हरण करने वाला तो विद्याधरोका अधिपति है तभी उन्हें करीब २ विश्वास हो गया कि अब छुटकारा मुश्किल है। रावण जब युद्ध में जाने लगा और सीता जी से प्रसन्न होने को कहा तो उस समय सीता जी को विश्वास हो गया था कि राम लक्ष्मण, रावण से जीत न सकेंगे । इसीलिये उनने कहा कि मेरा संदेश बिना सुनाये तुम राम लक्ष्मण को मत मारना । मतलब यह कि रावण की शक्ति का पूरा विश्वाश होने पर भी उनने रावण को वरण न किया इसीलिये सोता का महत्व है। आजकल जो विधवाएँ समाज के द्वारा जबर्दस्ती बन्धन में डाली गई हैं, उन्हें सीता समझना सीता के चरित्र का अपमान करना है।
विधवाविवाह के आन्दोलन से सिर्फ विधवाओं को अपने विवाह का अधिकार मिलता. न्हें विवाह के लिये कोई विवश नहीं करता । अगर वे नी खुशी से वैधव्य का पालन करें। परन्तु बहिन कल्यापीका कहना है कि विधवाविवाह से सीताके लिये अंगुल भर भी जगह न बचेगी। इसका मतलब यह है कि आजकल की विधवाएँ पुनर्विवाह के अधिShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com