Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 34
________________ ( ३२ ) और विशाल अनर्थ होंगे, इसीलिये संख्यावृद्धि के प्रलोभन में हमें न पड़ना चाहिये” लेकिन यह भूल है । प्रत्येक रिवाज से कुछ न कुछ हानि और कुछ न कुछ लाभ होता ही है | विचार सिर्फ़ इतना किया जाता है कि हानि ज्यादा है या लाभ ? अगर लाभ ज्यादा होता है तो वह ग्रहण किया जाता है । अगर हानि ज्यादा होती है तो छोड़ दिया जाता है । विवाह के रिवाज से ही बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह, कन्या- विक्रय, स्त्रियों की गुलामी आदि कुरीतियाँ और दुःपरिस्थितियाँ पैदा हुई हैं। अगर विवाह का रिवाज न होता तो न ये कुरीतियाँ होतीं, न विजातीय विवाह, विधवा-विवाह आदि के झगड़े खड़े होते। इसलिये क्या विवाह प्रथा बुरी हो सकती है ? मनुष्य को बहुत सी बीमारियाँ भोजन करने से होती हैं । तो क्या भोजन न करना चाहिये ? हमारे जीवन में ऐसा कौन सा कार्य या समाज में ऐसी कौनसी प्रथा है जिनमें थोड़ी बहुत बुराई न हो ? परंतु हमें वे सब काम इस लिये करना पड़ते हैं कि उनसे लाभ अधिक है। विधवा-विवाह से कितने अनर्थ हो सकेंगे, उससे ज़्यादा अनर्थ तो आज विधवा-विवाह न होने से हो रहे हैं। विधवाओं का नारकीय जीवन, गुप्त व्य भिचार का दौर दौरा, अविवाहित पुरुषों का बनगज की तरह डोलना और कसाइयों को भी लज्जित करने वाले भ्रूण हत्या के दृश्य, ये क्या कम अनर्थ है ? इन सब श्रनर्थों को दूर करने के लिये विधवा-विवाह एक सर्वोत्तम उपाय है । विधवाविवाह से समाज क्षीण नहीं होती, अन्यथा योरोप, अमेरिका आदि में यह तरक्की न होती । अगर विधवाविवाह के विरोध से समाज का उद्धार होता तो हमें पशुओं की तरह गुलामी की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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