Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 37
________________ ( ३५ ) पुरुष के हृदय में गर्भाधान की तीव्र इच्छा हो, फिर भले ही वह संस्कार २५ वर्ष की उम्र में करना पड़े । इच्छा पैदा होने के पूर्व ऐसे संस्कार करना बलात्कार के समान पैशाचिक कार्य है। प्रश्न (२३)--चतुर्थ, पंचम, सैतवाल आदि जातियों में विधवा विवाह कब से प्रचलित है और ये जातियाँ कब से जैन जातियाँ हैं ? उत्तर-जैन समाज की वर्तमान सभी जातियाँ हज़ार वर्ष से पुरानी नहीं हैं। जिन लोगों को मिलाकर ये जातियाँ बनाई गई थीं उनमें विधवा विवाह का रिवाज पहिले से ही था । यह इन जातियों की ही नहीं किन्तु दक्षिण प्रान्त मात्र की न्यायोचित रीति है । दक्षिण में अन्य अजैन लोगों में भी जोकि उच्चवर्णी हैं-यह रिवाज पाया जाता है । ऐतिहासिक सत्य तो यह है कि उत्तर भारत में पर्दे का रिवाज अाजाने से यहाँ की स्त्रियाँ मकान के भीतर कैद हो गई और पुरुषों के चङ्गुल में फँसगईं । पुरुषों ने इस परिस्थिति का बुरी तरह उपभोग किया। उन्होंने स्त्रियों के मनुष्योचित अधिकार हड़प लिये । परन्तु दक्षिण की स्त्रियाँ घर और बाहर दोनों जगह काम करती थीं, इस लिये स्वार्थी पुरुषों का कुचक उनके ऊपर न चल पाया और उनके पुनर्विवाह प्रादि के अधिकार सुरक्षित रहे । हाँ, जिन घरों की स्त्रियाँ आराम तलब हो कर घर में पड़ी रहीं उन घरों के स्वार्थी पुरुषों ने मौका पाकर उनके अधिकार हड़प लिये । इस लिये थोड़े से घरों में यह रिवाज नहीं है। उत्तर प्रान्त में भी शूद्रों में विधवा विवाह का रिवाज है । इसका का कारण यही है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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