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कुमारीविवाह से कोई अधिकार नहीं छिनते तो विधवा विवाह से कैसे छिनेंगे । कुछ लोग नासमझी से विधवा विवाह से उन अधिकारों का छिनना बतलाते हैं जो व्यभिचार से भी नहीं छिन सकते ! इस सम्बन्ध के कुछ शास्त्रीय उदाहरण सुनिये -
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कौशाम्बी नगरी के राजा सुमुख ने वीरक सेठ की स्त्री को हर लिया; फिर दोनों ने मुनियों को श्राहार दिया और मरकर विद्याधर, विद्याधरी हुए । इनही से हरिवंश चला । पद्मपुराण और हरिवंशपुराण की इस कथा से मालूम होता है कि व्यभिचार से मुनिदान अधिकार नहीं छिनता । राजा मधु ने चन्द्राभा का हरण किया था। पीछे सै दोनों ने जिनदीक्षा ली और सोलहवें स्वर्ग गये। इससे मालूम होता है कि व्यभिचार से मुनि, श्रार्थिका बनने का भी अधिकार नहीं छिनता । प्रायश्चित ग्रन्थों के देखने से मालूम होता है कि श्रार्थिका भी अगर व्यभिचारणी हो जाय तो प्रायश्चित के बाद फिर आर्यिका बनाई जा सकती है । व्यभिचारजात सुदृष्टि सुनार ने मुनिदीक्षा ली और मोक्ष गया, यह बात प्रसिद्ध ही है । इस से मालूम होता है कि व्यभिचार से या व्यभिचार जोत होने से किसी के अधिकार नहीं छिनते । विधवाविवाह तो व्यभिचार नहीं है, उससे किसी के अधिकार कैसे छिन सकते हैं ?
प्रश्न (२५) – इन जातियों में कोई मुनि दीक्षा ले सकता है या नहीं ? यदि ले सकता है तो क्या उनके ख़ानदान में विधवाविवाह नहीं हुआ और क्या विधवाविवाह करने वाले ख़ानदानों से बेटी व्यवहार नहीं हुआ ?
उत्तर – इन जातियों में मुनिदीक्षा लेते हैं। बेटी - व्यव
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