Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 46
________________ ( ४४ ) है। इस प्रथा का धर्म के साथ कोई ताल्लुक नहीं है। समाज की परिस्थिति देखकर उसी के अनुसार इस विषय में विचार करना चाहिए । परंतु जिन कारणों से सोमसेन जी ने तलाक़ देने का उपदेश दिया है उनसे तलाक देना अन्याय है। यों भी तलाक प्रथा अच्छी नहीं है। प्रश्न (३०)-किस कारण से पुराणों में विधवा विवाह का उल्लेख नहीं मिलता ? उस समय की परिस्थिति में और प्राज की परिस्थिति में अंतर है या नहीं? उत्तर-पुराणों के टटोलने के पहिले हमें यह देखना चाहिये कि पौराणिक काल में विधवाविवाह या स्त्रियों के पुनर्विवाह का रिवाज था या नहीं? ऐतिहासिक रष्टि से जब हम इस विषय में विचार करते हैं तब हमें कहना पड़ता है कि उस समय पुनर्विवाह का रिवाज ज़रूर था । २७ वै प्रश्न के उत्तर में कहा जा चुका है कि हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार विधवाविवाह सिद्ध है। गालव आदि के मत का उल्लेख सोमसेन जी ने भी किया है। इससे सिद्ध है कि जैनसमाज में यह रिवाज हो या न हो परंतु हिंद समाज में अवश्य था । हिंदू पुराणों के देखने से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है । उनके ग्रंथों के अनुसार सुग्रीव की स्त्री का पुनर्विवाह हुआ था; धृतराष्ट्र पांडु और विदुर नियोग की सन्तान हैं। यदि यह कहा जाय कि ये कहानियाँ झूठी हैं तो भी हानि नहीं, क्योंकि इससे इतना अवश्य मालूम होता है कि जिन लोगों ने ये कहानियाँ बनाई हैं उन लोगों में विधवाविवाह और नियोग का रिवाज ज़रूर था और इसे वे उचित समझते थे। दमयंती ने नल को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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