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सन्तान अल्पायु या रोगी होगी अथवा गर्भ स्थायो न रहेगा। बहुत से लोग यह समझते हैं कि स्त्रीको पुष्पवति हो जाने से ही गर्भाधान की पूर्ण योग्यता प्राप्त हो जाती है। लेकिन प्राकृतिक नियम इसके बिलकुल विपरीत है। अंड, पोपइया श्रादि फलों के वृक्षोंमें जब पुष्प पाते हैं तो चतुर माली उन्हें निष्फल ही झड़ा देता है। क्योंकि अगर ऐसा न किया जाय तो फल बहुत छोटे, बेस्वाद और रद्दी होते हैं । श्राम के वृक्ष में अगर सब फूलों के प्राम वनने लगें तो आम बिलकुल रद्दी होंगे,उनका आकार राई के दाने से शायद ही बड़ा हो सके । इसलिये प्रकृति फी सदी ६६ पुष्पों को निष्फल झड़ोदेती है। तब कहीं अच्छे आम पैदा होते हैं । सभी वृक्षों के विषय में यह नियम है कि अगर आप उनसे अच्छा फल लेना चाहते हैं तो प्रारम्भ के पुष्पों को फल न बनने दीजिये और मात्रा से अधिक फल न लगने दीजिये । नारी के विषय में भी यही बात है । वहाँ भी रजोदर्शन के बाद तुरन्त ही गर्भाधान के साधन न मिलना चाहिये, अन्यथा मृत्यु आदि की पूरी सम्भावना है। कहा जा सकता है-मृत्यु भले ही हो, परंतु उसका पाप नहीं लग सकता । लेकिन यह बात ठीक नहीं है,क्योंकि यत्ना. चार न करने से प्रमाद होता है और 'प्रमत्त योगात् प्राणज्यपरोपणं हिंसा' इस सूत्र के अनुसार वहाँ हिंसा भी है। जब हम जानते हैं कि ऐसा करने से हिंसा हो जायगी, फिर भी हम वही काम करें तो इससे हिंसा का अभिप्राय, अथवा हिंसा होने से लापर्वाही सिद्ध होती है जो कि पापबंध का कारण है। घरमें स्त्रियों को यह शिक्षा दी जाती है कि पानी
को ढककर रक्खा करो, नहीं तो कोड़े मकोड़े गिर कर मर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com