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( २८ ) जायेंगे। यद्यपि स्त्रियों के हृदय में कीड़े मकोड़े मारने का अभिप्राय नहीं है फिर भी प्रयत्नाचार से जो प्रमाद होता है उसका पाप उन्हें लगता है। जब इस अयत्नाचार से पाप लगता है तब जिस प्रयत्नाचार से मनुष्यों को भी प्राणों से हाथ धोना पड़े तो उससे पाप का बंध क्यों न होगा?
प्रश्न (१७)-किसी समाज की पांच लाख औरतों में एक लाख तेतालीस हजार विधवाएँ शोभा का कारण हो सकती हैं या नहीं ?
उत्तर-जिस समाज में विधवाओं को पुनर्विवाह करने का अधिकार है, उनका पुनर्विवाह किसी भी तरह से हीनदृष्टि से नहीं देखा जाता, स्त्रियों को इस विषय में कोई संकोच नहीं रहता, उस समाज में कितनी भी विधवाएं हो वे शोभा का कारण हैं। क्योंकि ऐसी समाजों में जो वैधव्य का पालन किया जायगा वह जबर्दस्ती से नहीं, त्यागवृत्ति से किया जायगा और त्यागवृत्ति तो जैनधर्म के अनुसार शोभा का कारण है ही, लेकिन जिस समाज में वैधव्य का पालन ज़बर्दस्ती करवाया जाता है, वहाँ पर कोई भी विधवा शोभा का कारण नहीं है, क्योंकि वहाँ कोई वैधव्यदीक्षा नहीं लेता-वह तो बन्दी जीवन है । बन्दियों से किसी भी समाज की शोभा नहीं हो सकती। ऐसी समाजों के साक्षरों को भी स्वीकार करना पड़ता है कि "एक विधवा भी शोभा का कारण नहीं है--शोभा का कारण तो सौभाग्यवती स्त्रियाँ हैं"। इससे साफ मालूम होता है कि विधवाओं को स्थान सौभाग्यवतियों से नीचा है। अगर ऐसी समाजों में वैधव्य कोई व्रत होता तो क्या विधवाओं का ऐसा नीचा स्थान रहता ? उनके विषय में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com