Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ विसंवादनं चाशुभस्य नाम्नः" अर्थात् मन, वचन, काय की कुटिलता से अशुभ नाम कर्म का बन्ध होता है । विधवा विवाह में मन, वचन, काय की कुटिलता का कोई सम्बन्ध नहीं है,बल्कि प्रत्येक बात की सफाई अर्थात् सरलता है । इस लिए अशुभ नाम कर्म का बन्ध नहीं हो सकता। हाँ, जो विधवा-विवाह के विरोधी हैं, वे अधिकतर नरकगति और तिर्यश्चगति का बन्ध करते हैं, क्योंकि उन्हें विसंवादन करना पड़ता है। विसंवादन से अशुभ नाम कर्म का बन्ध होता है । राजवार्तिक में विसंवादन का खुलासा इस प्रकार किया है सम्यगभ्युदयनि श्रेयसार्थासु क्रियासु प्रवर्तमानमन्यं कायवाङ्मनोभिर्विसंवादयति मैवं कार्पोरेवं कुर्विति कुटिलतयो प्रवर्तन विसंवादनं । अर्थात् कोई मनुष्य स्वर्गमोक्षोपयोगी क्रियाएँ कर रहा है उसे रोकना विसंवाद है । यह तो सिद्ध ही है कि विधवा विवाह अणुव्रत का साधक होने से स्वर्गमोक्षोपयोगी है । जो विधवाएं पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकती हैं, उन्हें विधवा विवाह के द्वारा अविरति से हटा कर देशविरति दीक्षा देना है। इस दीक्षा को जो रोकते हैं, धर्म विरुद्ध बताते हैं, बहिष्कारादि करते हैं, वे पूज्यपाद अकलंक देव आदि के अभिप्राय के अनुसार विसंवाद करते हैं जिससे नरकगति और तिर्यश्चगति का बन्ध होता है। यदि नरकगति और तियंचगति से नरकायु और तिर्यचायु की विवक्षा हो तो इनका भी बन्ध विधवा विवाह से नहीं हो सकता, क्योंकि बहुत प्रारंभ और बहुत परिग्रह से नरकायु का बन्ध होता है । विधवा विवाह में कुमारी विवाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64