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कुत्सित उद्देश्य से सर्वथा नहीं किया जाता है, किन्तु वह मोक्ष मार्गोपसेवी स्वपर हितकारक शुद्ध संतान की उत्पत्ति के लिये ही किया जाता है । इस लिये वह शास्त्रविहित, मोक्षमार्ग साधक, धर्म कार्य माना गया है । इस लिये विवाह होने पर काम लालसा के संक्लेश परिणामों की निवृत्ति उतना ही गौण कार्य है जितना किसान को भूसे का लाभ ।”
जो लोग विवाह का उद्देश्य काम लालसा की निवृत्ति नहीं मानते हैं और काम लालसा की निवृत्ति को जघन्य और कुत्सित उद्देश्य समझते हैं उनकी विद्वत्ता पर हमें दया आती है । ऐसे लोग जब कि जैन धर्म की वर्णमाला भी नहीं समझते तब क्यों गहन विषयों में टांग अड़ाने लगते हैं ? क्या हम पूछ सकते हैं कि 'काम लालसा की निवृत्ति' यदि जघन्य और कुत्सित है तो क्या काम लालसा में प्रवृत्ति करना अच्छा है ? सच है, जो लोग एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी श्रादि स्त्रियों के साथ मौज उड़ा रहे हैं, वे काम लालसा के त्याग को कुत्सित और जघन्य समझें तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? ख़ैर, अब हमें यह देखना चाहिये कि विवाह का उद्देश्य क्या है ?
विवाह गृहस्थाश्रम का मूल है गृहस्थाश्रम धर्म, अर्थ, काम तीनों पुरुषार्थों का साधक है। काम लालसा की जितनी निवृत्ति होती है उतना अंश धर्म है; जितनी प्रवृत्ति होती है उतना काम है । अर्थ इसका साधक है। इससे साफ़ मालूम होता है कि विवाह काम - लालसा की श्रांशिक निवृत्ति के लिये किया जाता है । शास्त्रकार कहते हैं
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