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प्रश्न (८)-ज्यभिचार से किन २ प्रकृतियों का बन्ध होता है और विधवा-विवाह से किन किन प्रकृतियों का बन्ध होता है ?
उत्तर-व्यभिचार से चारित्र मोहनीय का तीव्र बन्ध होता है और विधवाविवाह से कुमारीविवाह के समान चारित्र मोह का अल्प बन्ध होता है । व्यभिचार से पुण्यबन्ध नहीं होता, परन्तु विधवाविवाह से पुण्यबन्ध होता है । और वर्तः मान परिस्थिति में तो कुमारी विवाह से भी अधिक पुण्यबन्ध विधवाविवाह से होता है, क्योंकि वर्तमान में जो विधवा विवाह करता है वह भ्रणहत्या और व्यभिचार आदि को रोकने की कोशिश करता है, स्त्रियों के मनुष्योचित अधिकार दिलाता है । इस प्रकार के करुणा तथा परोपकार के भावोंसे उसे तीव्र पुण्य का बन्ध होता है, जो कि व्यभिचारी के और विधवाविवाह के विरोधियों के नहीं हो सकता। विधवाविवाह से दर्शनमोह का बन्ध नहीं हो सकता, क्योंकि विधवाविवाह धर्मानुकूल है। विधवाविवाह में योग देने वाला धर्म के मर्म को जान जाता है, स्याद्वाद के रहस्य से परिचित हो जाता है। येही तो सम्यक्त्व के चिन्ह हैं । विधवा विवाह के विरोधी एकान्तमिथ्यात्वी हैं, वे श्रुत और धर्म का अवर्णवाद करते हैं इसलिये उन्हें तीव्र मिथ्यात्व का बन्ध होता है । अन्य पाप प्रकृतियों का तो कहना ही क्या है ?
प्रश्न (8)-विवाह के बिना, काम लालसा के कारण जो संक्लेश परिणाम होते हैं, उनमें विवाह होने से कुछ न्यूनता आती है या नहीं?
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