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(· १२ ) है । कुशीला विधवा का मायाचार बहुत अधिक है। वेश्या व्यभिचारिणी के वेश में व्यभिचार करती है, किन्तु कुशीला तो पतिव्रता के वेश में व्यभिचार करती है । वेश्या को अपने पाप छिपाने के लिये विशेष पाप नहीं करना पड़ते, परन्तु कुशीला को तो-छोटे मोटे पापों की बात छोड़िये-भ्रूणहत्या सरीखे महान पाप तक करना पड़ते हैं। कहा जा सकता है कि वेश्या को तो पाप का थोड़ा भी भय नहीं है, परन्तु कुशीला को है तो इस प्रश्न की मीमांसा करने के पहिले यह ध्यान में रखना चाहिये कि यहाँ प्रश्न मायाचार का है-वेश्या और कुशीला की तरतमता दिखलाना नहीं है किन्तु मायाचार की तरतमता दिखलाना है । सो मायाचार तो कुशीला विधवा का अधिक है, साथ ही साथ भयङ्कर भी है।
इन दोनों में कौन बुरी है और कौन भली, इसके उत्तर में यही कहना चाहिये कि दोनों बुरी हैं । हाँ, हम पहिले कह चुके हैं कि परस्त्री सेवन से वेश्या सेवन में कम पाप है इसलिये कुशीला विधवा, वेश्या से भी बुरी कहलाई । कुशीला को जो पापका भय बतलाया जाता है वह पाप का भय नहीं है, किन्तु स्वार्थनाश का डर है । व्यभिचार प्रकट होजाने पर लोकनिंदा. होगी, अपमान होगा, घर से निकाल दी जाऊंगी, सम्पत्ति छिन जायगी,आदि बातों का डर होता है; यह पापका डर नहीं है। अगर पापका डर होता तो वह ऐसा काम ही क्यों करती?
और किया था तो छिपाने के लिये फिर और भी बड़े पाप क्यों करती ? खैर ! इन बातों का इस प्रश्नसे विशेष सम्बन्ध नहीं है। हां, इतना निश्चित है कि कुशीला विधवो का मायाचार
वेश्या से अधिक है और कुशीला विधवा अधिक भयानक है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com