Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

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Page 12
________________ ( १० ) है। सोमदेव प्राचार्य के मत से वेश्यासेवी भी ब्रह्मचर्याणुवती हो सकता है * परन्तु परस्त्री सेवी नहीं हो सकता। इससे वेश्या सेवन हलके दर्जे का पाप सिद्ध होता है। किसी स्त्री को विवाह के बिना ही पत्नी बना लेना वेश्यासेवन से भी कम पाप है, क्योंकि वेश्यासेवी की अपेक्षा रखैल स्त्री वाले की इच्छाएँ अधिक सीमित हुई हैं। विधवा विवाह इन तीन श्रेणियों में से किसी भी श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि ये तीनो विवाह से कोई सम्बन्ध नहीं रखते। कहा जा सकता है कि विधवा विवाह परस्त्री सेवन में ही अन्तर्गत है, क्योंकि विधवा परस्त्री है । इसके लिये हमें यह समझ लेना चाहिये कि परस्त्री किसे कहते हैं और विवाह क्यों किया जाता है ? अगर कोई कुमारी, विवाह के पहले ही संभोग करे तो वह पाप कहा जायगा या नहीं ? यदि पाप नहीं है तो विवाह की ज़रूरत ही नहीं रहती । यदि पाप है तो विवाह हो जाने पर भी पाप कहलाना चाहिये । यदि विवाह हो जाने पर पाप नहीं कहलाता और विवाह के पहिले पाप कहलाता है तो इससे सिद्ध है कि विवाह, व्यभिचार दोष को दूर करने का एक अव्यर्थ साधन है । जो कुमारी आज परस्त्री है और जो पुरुष आज पर पुरुष है, वे ही विवाह हो जाने पर स्वस्त्री और स्वपुरुष कहलाने लगते हैं । इससे मालूम होता है कि कर्मभूमि में स्वस्त्री और स्वपुरुष जन्म से पैदा । नहीं होते, किन्तु बनाये जाते हैं। कुमारी के समान विधवा * वधूवित्तस्त्रियो मुक्त्वा सर्वत्रान्यत्रऽतजने । मातास्वसा तनूजेति मतिर्बह्म गृहाश्रमे ॥ --यशस्तिलक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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