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( है )
की बनिस्बत आरम्भ और परिग्रह अधिक है ही नहीं, तब वह नरकायु का कारण कैसे हो सकता है ? तिर्यञ्चाय के बन्ध का कारण है मायाचार । सो मायाचार तो विधवा विवाह के विरोधी ही बहुत करते हैं - उन्हें गुप्त पाप छिपाना पड़ते हैंइसलिये वे तिर्यञ्चायु का बन्ध श्रवश्य ही करते हैं । विधवा विवाह के पोषकों को मायाचारी से क्या मतलब ? इस लिए वे तिर्यञ्चाय का बन्ध नहीं करते ।
हाँ यह बात दूसरी हैं कि कोई विधवा विवाह करने के बाद पाप करे जिससे इन अशुभ कर्मों का बन्ध हो जाय । लेकिन वह बन्ध विधवा विवाह से न होगा, किन्तु पाप से हागा | कुमारी विवाह के बाद और मुनी वेष लेने के बाद भी तो लोग बड़े बड़े पाप करते हैं। इससे कुमारी विवाह और मुनिवेष बुरा नहीं कहा जा सकता। इसी तरह विधवा विवाह भी बुरा नहीं कहा जा सकता ।
प्रश्न ( ४ ) – यदि विधवा विवाह पाप कार्य है तो साधारण व्यभिचार से उसमें कुछ अन्तर होता है या नहीं ? यदि हां, तो कितना और कैसा ?
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उत्तर- जब विधवा विवाह पाप ही नहीं है तो साधारण व्यभिचार से उसमें अन्तर दिखलाने की क्या ज़रूरत है ? . खैर ! दोनों में अन्तर तो है, परन्तु वह 'कुछ' नहीं, 'बहुत' है । विधवा विवाह श्रावकों के लिये पाप नहीं है और व्यभिचार पाप है । वर्तमान में व्यभिचार को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं - ( १ ) परश्री सेवन, (२) वेश्या सेवन और (३) विवाह के बिना ही किसी स्त्री को पत्नी बना लेना । पहिला सबसे बड़ा है; दूसरा उससे छोटा
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