Book Title: Jain Dharm aur Vividh Vivah
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ जैनधर्म और विधवा विवाह SOM PORN प्रश्न (१)—विधवा विवाह से सम्यग्दर्शन का नाश हो जाता है या नहीं? यदि होता है तो किसका ? विवाह करने कराने वालों का या पूरी जाति का ? उत्तर-विधवा विवाह से सम्यग्दर्शन का नाश नहीं हो सकता । सम्यग्दर्शन अपने आत्मस्वरूप के अनुभव को कहते हैं । अात्मस्वरूप के अनुभव का, विवाह शादी से कोई ताल्लुक नहीं। जब सातवे नरक के नारकी और पाँचों पाप करने वाले प्राणियों का सम्यग्दर्शन नष्ट नहीं होता तब, विधवा विवाह तो ब्रह्मचर्याणुव्रत को साधक है उससे सम्यक दर्शन का नाश कैसे होगा ? विधवा विवाह अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से होता है । अप्रत्याख्यानावरण कषाय से सम्यग्दर्शन का घात नहीं हो सकता। कहा जा सकता है कि विधवा विवाह को धर्म मानना तो मिथ्वात्व कर्म के उदय से होगा, और मिथ्यात्व कर्म सम्यग्दर्शन का नाश करदेगा। इसके उत्तर में इतना कहना बस होगा कि यों तो विधवा विवाह ही क्यों, विवाह मात्र धर्म नहीं है क्योंकि कोई भी प्रवृत्तिरूप कार्य जैन शास्त्रों की अपेक्षा धर्म नहीं कहा जा सकता । यदि कहा जाय कि विवाह सर्वथा प्रवृत्यात्मक नहीं है किन्तु निवृत्यात्मक भी है, अर्थात् विवाह से एक स्त्री में राग होता है तो संसार की बाकी सब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 64