Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 08 Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: View full book textPage 7
________________ मममममम E-SEE EXHIBHERE भरा विहीव होम पर परा विभूति में मुमे इपा मही पाकि प्रापही समान में पता और मन बने से मेरा संसार सापा से पार होगा विवित हैपरम सच मेरे भतारपा मारा मेरी मारमा मिपाल मा पाच प्रमाणादि पांच बार रिमा एस पारी मेधुर परिमर प्रेष माष मारा धोम राय पापि अमर पापा से निसार समुह में हमारे पासा सर्व प्रभर भिषा सदा सम संग किनारपीच पंम पारा मार दामावर प अमित पण पाव मबाब पीचापि पारा मापबारमामा मार पावारिस हापधर्म में कमों की बिमारत मोपच काय पारी प्रमु! मेरी प्रास्मा बग शान्ति रस सागर में धर्म माम माम सपी प्रति रम्य निर्मश पर में पीत, क परपा की बारात्रों में साठ मनावित होकर योग रिपरि मृत बागपती हे च प्रमु / मेरा विचर, चार शापार सदराम मरी प्रारमा में सरासममालमियास रो बाम दगम पर अपपप समर मर सपोनलिोग पमा म विहार मरना में मम भाष में। मेरी मावीमा : मार माह बाये अहो नामारिला की त्या में भी थाम हरे संसार प्रति मासालामाचौं / पर मेरी चार पति भीमाती पर बोमी बीमा प्रति मैत्री मार से किसी प्राची स मप रेप माय मरो परितु मेरी चममा में इस मा म साप्त और पर पसा सिरसाभी की मी मी समर सरा सा भीर सहायता समाप पीर मेरे एप में भी ये निय से प्राधि माइविरसई परमात्मा ! गुबी बों मति मेरे REACHESecrab माPage Navigation
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