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जैनधर्म की उदारता यहाँ पर कल्पित जातियों या वर्ण का उल्लेख न करके सर्व साधारण को जैनधर्म ही एक शरणभत बतलाया गया है । जैनधर्म में मनुष्यों की तो बात क्या पशु पक्षी या प्राणीमात्र के कल्याण का भी विचार किया गया है।
आत्मा का सच्चा हितैषी, जगत के प्राणियों को पार लगाने वाला, महा मिथ्यात्व के गड्डे से निकाल कर सन्मार्ग पर आरूढ़ करा देने वाला और प्राणीमात्र को प्रेम का पाठ पढ़ाने वाला सर्वज्ञ कथित एक जैनधर्म है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रत्येक धर्मावलम्बी की अपने अपने धर्म के विषय में यही धारणा रहती है, किन्तु उसको सत्य सिद्ध कर दिखाना कठिन है । जैनधर्म सिखाता है कि अहम्मन्यता को छोड़ कर मनुष्य से मनष्यताका व्यवहार करो, प्राणीमात्रसे मैत्रीभाव रखो, और निरंतर परहित निरत रहो । मनुष्य ही नहीं पशुओं तक के कल्याण का उपाय सोचो और उन्हें घोर दुःख दावानल से निकालो।
धर्म शास्त्र इसके ज्वलंत प्रमाण हैं कि जैनाचार्यों ने हाथी, सिंह, शृगाल, शूकर, बन्दर, नौला, आदि प्राणियों को भी धर्मोपदेश देकर उनका कल्याण किया था। (देखो आदिपुराण पर्व १० श्लोक १४९) इसी लिये महात्माओं को अकारणबंधु कह कर पुकारा गया है । एक सच्चे जैन का कर्तव्य है कि वह महा दुराचारी को भी धर्मोपदेश देकर उसका कल्याण करे। इस संबंध में अनेक उदाहरण जैन शास्त्रों में भरे पड़े हैं।
जिनभक्त धनदत्त सेठ ने महाव्यसनी वेश्यासक्त दृढ़सूर्य को फांसी पर लटका हुआ देख कर वहीं पर णमोकार मंत्र दिया था, जिसके प्रभाव से वह पापात्मा पुण्यात्मा बनकर देव हुआ था । वही देव धनदत्त सेठ की स्तुति करता हुधा कहता है कि- ..
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