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उदारता के उदाहरण
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धर्म का मुख उज्ज्वल करने वाले हैं । लेकिन विस्तार भय से उन सब का वर्णन करना यहां आशक्त है । हां, कुछ ऐसे उदाहरणोंका सारांश यहां उपस्थित किया जाता है । आशा है कि जैन समाज इस पर गंभीरता से विचार करेगी ।
१ - अग्निभूत - मुनि ने चाण्डाल की अंधी लड़की को श्राविका के व्रत धारण कराये । वही तीसरे भव में सुकुमाल हुई थी। २ - पूर्णभद्र — और मानभद्र नामक दो वैश्य पुत्रों ने एक चाण्डाल को श्रावक के व्रत ग्रहण कराये । जिससे वह चाण्डाल मर कर सोलहवें स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ ।
३ - म्लेच्छ कन्या - जरा से भगवान नेमिनाथ के चाचा वसुदेव ने विवाह किया, जिससे जरत्कुमार हुआ । उसने मुनिदीक्षा महण की थी ।
४ – महाराजा श्रेणिक — बौद्ध थे तब शिकार खेलते थे और घोर हिंसा करते थे, मगर जब जैन हुए तब शिकार आदि त्याग कर जैनियों के महापुरुष होगये ।
५ - विद्युत चोर-चोरों का सरदार होने पर भी जम्बू स्वामी के साथ मुनि होगया और तप करके सर्वार्थ सिद्धि गया । ६-भैंसों तक का मांस खाजाने वाला - पापी मृगध्वज मुनिदत्तमुनैः पार्श्व जैनीं दीक्षां समाश्रितः । क्षयं नीत्वा सुधीर्ध्यानात् घाति कर्मचतुष्टयम् ।। केवलज्ञानमुत्पाद्य संजातो भुवनाचितः ॥
अराधना कथा ५५वीं ॥
मुनिदत्त मुनि के पास जिनदीक्षा लेकर तप द्वारा घातिया कर्मों को नाश कर जगत्पूज्य हो जैनियों का परमात्मा बन गया ।
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