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वैवाहिक उदारता
थे और न उन्हें कोई घृणा की दृष्टि से देखता था ।
मगर खेद है कि आज कुछ दुराग्रही लोग कल्पित उपजातियों खण्डेलवाल, परवार, गोलालारे, गोलापर्व, अग्रवाल, पद्मावती पुरवाल, हूमड़ आदि में परस्पर विवाह करने से धर्म को बिगड़ता हुआ देखने लगते हैं । उन्हें खबर नहीं है कि
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१ - श्रेणिक राजा ने ब्राह्मण की लड़की नन्दश्री से विवाह किया था । २ - अपनी पुत्री धन्यकुमार वैश्य को दी थी । ३ - राजा जयसेन ने अपनी पुत्री पृथ्वी सुन्दरी प्रीतिंकर वैश्य को दी थी । ४ - राजा उपश्रेणिक ने भील की लड़की तिलकवती से विवाह किया था । ५ - सम्राट चन्द्रगुन ने ग्रीस देश के ( म्लेच्छ) राजा सैल्यकस की कन्या से विवाह किया था । ६- म्लेच्छ की कन्या जरा से नेमिनाथ के काका वसुदेव ने विवाह किया था । ७- चारुदत्त (वैश्य) की पुत्री गंधर्वसेना ने राजा वसुदेव ( क्षत्री) को वरा था । ८-उपाध्याय (ब्राह्मण ) सुग्रीव और यशांग्रीव ने भी अपनी दो कन्यायें वसुदेव (क्षत्रिय) को विवाही थीं । ९ - ब्राह्मण कुल में क्षत्रिय माता से उत्पन्न हुई कन्या सोमश्री को वसुदेव ने विवाहा था । १० - सेठ कामदत्त (वरिणक्) ने अपनी कन्या बंधुमती का विवाह वसुदेव से कर दिया था । इसी प्रकार से १० नहीं किन्तु दस सौ उदाहरण पेश किये जा सकते हैं; जिनसे मालूम होगा कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तथा म्लेच्छों की भी कन्याओं से विवाह करना कोई पाप नहीं है। ऐसा करने से न तो धर्माधिकार मिटता है और न कोई लौकिक हानि ही होती है । भगवज्जिनसेनाचार्य ने तो आदिपुराण में स्पष्ट उल्लेख किया है कि
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* इस विश्य का विस्तार पूर्वक एवं सप्रमाण जानने के लिये श्री० पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार लिखित 'विवाह क्षेत्र प्रकाश' देखने के लिये हम पाठकों से साग्रह अनुरोध करते हैं । - लेखक
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