Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 67
________________ ५४ जैन धर्म की उदारता भले बना हो सम्पति हम पर अत्याचारी ॥ किन्तु यही सन्तोष हटों नहिं हम निज प्रण से। पुरुष जाति क्या उऋण हो सकेगी इस ऋण से। भगवान महावीर स्वामी के शासन में महिलाओं के लिये बहुत उच्च स्थान है । महावीर स्वामी ने स्वयं अनेक महिलाओं का उद्धार किया है । चन्दना सती को एक विद्याधर उठा ले गया था, वहाँ से वह भीलों के पंजे में फंस गई । जब वह जैसे तैसे छूटकर आई तब स्वार्थी समाज ने उसे शंका की दृष्टि से देखा । एक जगह उसे दासी के स्थान पर दीनतापूर्ण स्थान मिला । उसे सब तिरस्कृत करते थे तब भगवान महावीर स्वामी ने उसके हाथ से आहार ग्रहण किया और वह भगवान महावीर के संघ में सर्वश्रेष्ठ आर्यिका हो गई। तात्पर्य यह है कि जैन धर्म में महिलाओं को उतना ही उच्च स्थान है जितना कि पुरुषों को। यह वात दूसरी है कि जैन समाज आज अपने उत्तरदायित्व को भूल रहा है। दारता । जैनधर्म की सब से अधिक प्रशंसनीय एवं अनुकूल उदारता तो विवाह संबंधी है। यहाँ वर्णादि का विचार न कर के गणवान वर कन्या से संबंध करने की स्पष्ट आज्ञा है । हरिवंशपुराण की स्वाध्याय करने से मालूम होगा कि पहले विजातीय विवाह होते थे, असवर्ण विवाह होते थे, सगोत्र विवाह भी होते थे, स्वयंवर होता था, व्यभिचार जात-दस्सों से विवाह होते थे, म्लेच्छों से विवाह होते थे, वेश्याओं से विवाह होते थे, यहाँ तक कि कुटुम्ब में भी विवाह हो जाते थे । फिर भी ऐसे विवाह करने वालों का न तो मन्दिर बन्द होता था, न जाति विरादरी से वह खारिज किये जाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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