Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 75
________________ पं०परमेष्ठीदासजी जैन न्यायतीर्थ लिखितयह पुस्तकें अाज ही मंगा कर पढ़िये । (१) चर्चासागर समीक्षा- इसमें गोबर पंथी ग्रन्थ 'चर्चासागर' की खूब पोल खोली गई है । और दुराग्रही पण्डितों की युक्तियों की धज्जी २ उड़ाई गई है । इस समीक्षा के द्वारा जैन साहित्य पर लगा हुआ कलंक धोया गया है । प्रत्येक समाज हितैषी को यह पुस्तक अवश्य पढ़ना चाहिये। पृष्ठ संख्या ३०० होने पर भी मूल्य मात्र II5) रखा है । (२) दान विचार समीक्षा क्षुल्लक वेषी ज्ञानसागर द्वारा लिखी गई अज्ञानपूर्ण पुस्तक 'दानविचार' की यह युक्ति आगमयुक्त और बुद्धिपूर्ण समीक्षा है । धर्म के नाम पर रचे गये, मलीन साहित्य का भान कराने वाली और इस मैल से दूषित हृदयों को शुद्ध करने वाली यह समीक्षा आपको एक वार अवश्य पढ़ जाना चाहिये । पृ० ९५ मूल्य मात्र) है। (३) परमेष्ठि पद्यावली-इसमें महावीर जयन्ती, श्रुतपंचमी, रक्षा बंधन, पर्युषण पर्व, दीपावली, होली आदि से संबंध रखने वाली तथा सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय एवं युवकों में जीवन डाल देने वाली करीब ५० सुललित भावमय कवितामों का संग्रह है । मूल्य मात्र).... सूर्यप्रकाश समीक्षा-लेखक पंसित जुगलकिशोर मुख्तार पू०६:६ मूल्य छह माने । मंगाने के पते(१) जौहरीमल जैन सर्राफ, बड़ा दरीबा देहली । (२) दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत । (३) जैनसाहित्य प्रसारक कार्यालय हीरा बाग बम्बई । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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