Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 72
________________ उपरहार यदि इसी प्रकार के उदार विचार हमारे सब साधुओं के हो जावेतो धर्म का उद्धार और समाज का कल्याण होने में विलम्ब न रहे ! मगर खेद है कि कुछ स्वार्थी एवं संकुचित दृष्टि वाले पण्डितमन्यों की चुंगल में फंस कर हमारा मुनि संघ भी जैनधर्म भी उदारता को भूल रहा है । अब तो इस समय सच्चा काम युवकों के लिये है। यदि वे जागत होजावें और अपना कर्तव्य समझने लगे तो भारत में फिर वही उदार जैन धर्म फैल जावे। उत्साही युवको ! अब जागृत होश्रो, संगठन बनाओ, धर्म को पहिचानो और वह काम कर दिखाओ जिन्हें भगवान अकलंकादि महापुरुषों ने किया था । इसके लिये स्वार्थ त्याग करना होगा, पंचायतों का झूठा भय छोड़ना होगा, वहिष्कार की तोपको अपनी छाती पर दगवाना होगा और अनेक प्रकार से अपमानित होना होगा। जो भाई बहिन तनिक तनिक से अपराधों के कारण जाति पतित किये गये हैं उन्हें शुद्ध करके अपने गले लगाओ, जो दीन हीन पतित जातियाँ हैं उन्हें सुसंस्कारित कर के जैनधर्मी बनाओ, स्त्रियों और शद्रों के अधिकार उन्हें बिना मांगे प्रदानकरो तथा समझाओ कि तुम्हारा क्या कर्तव्य है। अन्तर्जातीय विवाह का प्रचार करो और प्रतिज्ञा करो कि हम सजातीय कन्या मिलने पर भी विजातीय विवाह करेंगे । जैनधर्म के उदार सिद्धान्तों का जगत में प्रचार करो और सब को बतादो कि जैनधर्म जैसी उदारता किसी भी धर्म में नहीं है । यदि हमारा युवक समुदाय साहस पूर्वक कार्य प्रारम्भ करदे तो मुझे विश्वास है कि उसके साथ सारी समाज चलने को तैयार हो जायंगी । और वह दिन भी दूर नहीं रहेंगे जब स्थिति पालक दल अपनी भल को समझ कर जैनधर्म की उदारता को स्वीकार करेगा। सच बात तो यह है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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