Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 46
________________ उदारता के उदाहण उदारता के उदाहरण । जैनधर्म में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें जाति या वर्ण की अपेक्षा गुणों को महत्व दिया गया है । यही कारण है कि वर्ण की व्यवस्था जन्मतः न मानकर कर्म से मानी गई है । यथामनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयोद्भवा । वृत्तिभेदाहिताद्भेदाच्चातुर्विध्यमिहाश्नुते ॥ पर्व ३८-४५ ॥ ब्राह्मणा व्रतसंस्कारात् क्षत्रियाः शस्त्रधारणात् । बणिज्योऽर्थार्जनान्न्याय्यात् शूद्रा न्यग्वृत्तिसंश्रयात् ॥ -आदिपुराण पर्व ३८-४६ । अर्थात्-जाति नाम कर्म के उदय से उत्पन्न हुई मनुष्य जाति एक ही है किन्तु जीविका के भेद से वह चार भागों (वर्षों) में विभक्त होगई है । व्रतों के संस्कार से ब्राह्मण, शस्त्र धारण करने से क्षत्रिय, न्यायपूर्वक द्रव्य कमाने से वैश्य और नीच वृत्ति का आश्रय करने से शूद्ध कहे जाते हैं। तथा चक्षत्रियाः क्षततस्त्राणात् वैश्या वाणिज्ययोगतः । शद्राः शिल्पादि सबंधाज्जाता वर्णास्त्रयोऽप्यतः॥ हरिवंशपुराण सर्ग ९-३९ । अर्थात्-दुखियों की रक्षा करने वाले क्षत्रिय, व्यापार करने बालेवैश्य और शिल्प कला से संबंध रखनेवालेशद्र बनाये गयेथे । इस प्रकार जैन धर्म में वर्ण विभाग करके भी गुणों की प्रतिष्ठा की गई है । और जाति या वर्ण का मद करने वालों की निन्दा की गई है तथा उन्हें दुर्गति का पात्र बताया है । भाराधना कथाकोश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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