Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 49
________________ जैनधर्म की उदारता ७ - परस्त्री सेवीका मुनिदान - राजा सुमुख वीरक सेठ की पत्नी बनमाला पर मुग्ध होगया । और उसे दूतियों के द्वारा अपने महलों में बुला लिया तथा उसे घर नहीं जाने दिया और अपनी स्त्री बनाकर उससे प्रगाढ़ काम सेवन करने लगा । एकदिन राजा सुमुख के मकान पर महामुनि पधारे। वे सब जानने वाले विशुद्ध ज्ञानी थे, फिर भी राजा के यहां आहार लिया । राजा सुख और बनमाला दोनों (विनैकावार या दस्साओं) ने मिलकर आहार दिया और पुण्य संचय किया । इसके बाद भी वे दोनों काम सेवन करते रहे। एक समय बिजली गिरने से वे मर कर विद्याधर विद्याधरी हुए । इन्हीं दोनों से 'हरि' नामक पुत्र हुआ जिससे 'हरिवंश' की उत्पत्ति हुई । ( देखो हरिवंश पुराण सर्ग १४ श्लोक ४७ से सर्ग १५ श्लोक १३ तक ) ३६ कहाँ तो यह उदारता कि ऐसे व्यभिचारी लोग भी मुनिदान देकर पुण्य संचय कर सकें और कहां आज तनिक से लांछन से पतित किया हुआ जैन दस्सा-विनैका या जातिच्युत होकर जिनेन्द्र के दर्शनों को भी तरसता है । खेद ! ८ - वेश्या और वेश्या सेवी का उद्धार - हरिवंश पुराण के सर्ग २१ में चारुदत्त और बसन्तसेना का बहुत ही उदारतापूर्ण जीवन चरित्र है । उसका कुछ भाग श्लोकों को न लिख कर उनकी संख्या सहित यहाँ दिया जाता है । चारुदत्त ने बाल्यावस्था में ही अणुव्रत लेलिये थे (२१-१२) फिर भी चारुदत्त काका के साथ बसन्तसेना वेश्या के यहाँ माता की प्रेरणा से पहुंचाया गया (२१-४०) बसन्तसेना वेश्या की माता ने चारुदत्त के हाथ में अपनी पुत्री का हाथ पकड़ा दिया (२१-५८) फिर वे दोनों मजे से संभोग करते रहे । अन्त में बसन्तसेना की माता ने चारुदत्त को घर से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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