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जैनधर्म में शूद्रों के अधिकार इस कथा भाग से जैनधर्म की उदारता अधिक स्पष्ट हो जाती है । जहाँ आज के दुराग्रही लोग स्त्री मात्र को पूजा प्रक्षाल का अनधिकारी बतलाते हैं वहाँ मुर्गा मुर्गियों को पालने वाली शूद्र जाति की कन्यायें जिन मन्दिर में जाकर महा पूजा करती हैं और अपना भव सुधार कर देव हो जाती हैं। शूद्रों की कन्याओं का समाधिमरण धारण करना, वीजाक्षरों का जाप करना आदि भी जैनधर्म की उदारता को उद्घोषित करता है। ___ इसके अतिरिक्त एक ग्वाला के द्वारा जिन पूजा का विधान बताने वाली भी ११३ वीं कथा अाराधना कथा कोश में है। उस का भाव इस प्रकार है
धनदत्त नामक एक ग्वाला को गायें चराते समय एक तालाव में सुन्दर कमल मिल गया । ग्वाला ने जिनमन्दिर में जाकर राजा के द्वारा सुगुप्त मुनि से पूछा कि सर्व श्रेष्ठ व्यक्ति को यह कमल चढ़ाना है । आप बताइये कि संसार में सर्व श्रेष्ठ कौन है ? मुनिराज ने जिन भगवान को सर्व श्रेष्ठ बतलाया, तदनुसार धनदत्तं ग्वाला राजा और नागरिकों के साथ जिन मन्दिर में गया और जिनेन्द्र भगवान की मूर्ति (चरणों) पर वह कमल ग्वाला ने अपने हाथों से भक्तिपूर्वक चढ़ा दिया । यथा
तदा गोपालकः सोऽपि स्थित्वा श्रीमज्जिनाग्रतः । भो सर्वोत्कृष्ट ते पद्म गृहाणेदमिति स्फुटम् ॥१॥ उक्त्वा जिनेन्द्रपादाब्जो परिक्षिप्त्वा सुपंकजम् । गतो मुग्धजनानां च भवेत्सत्कर्म शर्मदम् ॥१६॥
इस प्रकार एक शूद्र ग्वाला के द्वारा जिन प्रतिमा के चरणों पर कमल का चढ़ाया जाना शूद्रों के पूजाधिकार को स्पष्ट सूचित
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