Book Title: Jain Dharm Ki Udarta
Author(s): Parmeshthidas Jain
Publisher: Joharimalji Jain Saraf

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Page 43
________________ जैनधर्म की उदारता ३० कि उस ओर समाज का आज तनिक भी ध्यान नहीं है । फिर भी अत्याचारी दण्ड विधि तो चालू ही है । वह दण्ड विधि इतनी दूषित, अन्याय पूर्ण एवं विचित्र है कि उसे दण्ड विधान की विडम्बना ही कहना चाहिये | बुन्देलखण्ड आदि प्रान्तों का दण्ड विधान तो इतना भयंकर एवं क्रूर है कि उसे देखकर हृदय काँप उठता है ! उसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं - १ - मन्दिर में काम करते हुये यदि चिड़िया आदि का अंडा पैर के नीचे अचानक आ जावे और दब कर मर जावे तो वह व्यक्ति और उसके घर के आदमी भी जाति से बंद कर दिये जाते हैं और उनको मन्दिर में भी नहीं आने दिया जाता ! २ – एक बैल गाड़ी में १० जैन स्त्री पुरुष बैठ कर जा रहे हों और उसके नीचे कोई कुत्ता बिल्ली अकस्मात् आकर दब मरे या गाड़ी हाँकने वाले के प्रमाद से दब कर मर जाय तो गाड़ी में बैठे हुये सभी व्यक्ति जैनधर्म और जाति से च्युत कर दिये जाते हैं । फिर उन्हें विवाह शादियों में नहीं बुलाया जाता है, उनके साथ रोटी बेटी व्यवहार बन्द कर दिया जाता है और वे देवदर्शन तथा पूजा आदि के अधिकारी नहीं रहते हैं ! ३ -- यदि किसी के मकान या दरवाजे पर कोई मुसलमान द्वेष वश अंडे डाल जावे और वे मरे हुवे पाये जावें तो बेचारा वह जैन कुटुम्ब जाति और धर्म से बंद कर दिया जाता है । ४ - यदि किसी का नाम लेकर कोई स्त्री पुरुष क्रोधावेश में कर कुंये में गिर पड़े या विष खा ले अथवा फाँसी लगाकर मर जाय तो वह लांछित माना गया व्यक्ति सकुटुम्ब जाति वहिष्कृत किया जाता है और मन्दिर का फाटक भी सदा के लिए बन्द कर दिया जाता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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