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अतीत की झलक
५. भापा के व्यामोह पर जो कि अभी तक भी भारत का खून चूस रहा है, और देश को प्रान्तो के नाम से बंटवारे कर खडित कर रहा है, भगवान ने गहरा कुठाराघात किया है। इसलिए तत्कालीन पडिताऊ भाषा संस्कृत में तत्वज्ञान न देकर उस समय की आम जनता की भापा अर्ध-मागधी प्राकृत का ही भगवान् ने अपनी वाणी का माध्यम रखा है, जिसमे सब लाभ उठा सके ।
. ६ ऐहिक और पारलौकिक सुख के लिए होने वाले पशुहिया से भरे यज, देवीपूजन तथा पशुबलिकर्म और पर्व के विरुद्ध मे भगवान् ने अपनी अावाज बलन्द की और मयम, तप, अहिंसा तथा पुरुषार्थ प्रधान मार्ग की महत्ता स्थापित की।
७ उनका उपदेश समता, वैराग्य, उपगम, निर्वाण, गौच, अजुता, निरभिमान, कपाय, अप्रमाद, निर्वैर, अपरिग्रह अादि गुणो के विकास के लिए होता था।
८ मनुष्य का भाग्य ईश्वर के हाथो मे न देकर, मनुग्य-मनुप्य को ही अपने भाग्य का निर्माता तथा पुस्पार्थ की प्रधानता और काल, कर्म, नियति, स्वभाव, तथा पुरुषार्थ का समन्वय स्थापित करना उनका महत्त्वपूर्ण कार्य था। इमी का नाम कर्मवाद है।
६ आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद, और क्रियावाद महावीर की विशेप देन है।
१० प्रत्येक प्रात्मा, परमात्मा बन सकता है, रागद्वेप-रहित व्यक्ति ही मच्चा ब्राह्मण होता है। इच्छायो का निरोध ही यज है, अात्मा की निर्मलता धन-दौलत से नही । त्याग मे ही कल्याण मभव है। अहकार का दमन और पर का रक्षण ही क्षत्रियत्व है।
मंमार के समस्त जीवो के प्रति मैत्री, गुणियो के प्रति प्रमोद, निर्बल एव विपन्न के प्रति दयाभाव और विपरीत वृत्ति वाले मनुष्य के प्रति माध्यस्थ भाव रखना ही धर्म है।
महावीर स्वामी दूसरो के प्रति हितपी एव अपने प्रति शोधक बनने का ही उपदेश देते थे।
तत्कालीन धर्म-प्रवर्तक महावीर कालीन अन्यान्य धर्म प्रवर्तक ---जामाली, मखली पुत्तगोशाल पूरणकम्यप, प्रक्रुद्धकात्यायन, अजितकेशी कम्बलि, मजय वेलपित्त और