Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sushilmuni
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 266
________________ २५० जैन धर्म वर्ष भर मे लगे अतिचारो का पालोनन, केगलंचन, पर्युषणालला वानन, वमति, भगवदागधन अष्टम तप, तथा साम्बत्मरिक प्रतिक्रमण कप छ उपनामो को अवश्य करते है। श्रावक और धाविका इन दिनो में व्यावहारिक तथा जागतिक सम्बन्त्री से अलग हट कर निरन्तर धर्म माधना तथा तपस्या मे लीन रहते है, और गंवत्सरी के दिन तो जैन समाज का कोई भी बच्चा तक यथा गक्य,तप. स्वाध्याय और कयाश्रवण के बिना नहीं रहते। पाठ दिन तक कितने ही जैन, भाद्र कृष्णा १२ मे भाद्र शुक्ला पचमी तक निर्जल और निराहार रहकर एक ही स्थान में ध्यान प्रार स्वाध्याय मे ही पयूषण पर्व मनाते है । सम्वत्मरी के सायं प्रतिक्रमण के अवसर पर प्रत्येक जैन को चौरासी लाख जीवायोनि से मन, वचन, काया पूर्वक क्षमायाचना करनी पड़ती है। इस दिन भी जो क्षमायाचना नहीं मांगता है, और न ही क्षमा प्रदान करता है, वह जैन कहलाने का अधिकारी भी नहीं है। प्रेम मिन्नन, बिबमंत्री तथा विश्ववात्सल्य ही इस पर्व का मुख्य प्राधार है। दशलक्षणपर्व-दिगम्बर सम्प्रदाय में पयूषण पर्व के स्थान पर दश लक्षण पर्व मनाया जाता है। भाद्र शुक्ला पचमी मे भाद्र गु० अनन्तचतुर्दगी तक इस पर्व की माराधना की जाती है। प्रतिदिन धर्म के दशलक्षणों का क्रमश विवेचन होता है। उत्तम क्षमा, मार्दव, अार्जव, गौच, सत्य, सयम, तप, त्याग आकिंचन्य पौर ब्रह्मचर्य रूप दशधर्मो का व्याख्यान, अभ्यास तथा तत्त्वार्थ मूत्र के दश अध्यायो का क्रमश स्वाध्याय किया जाता है । धर्म के विशाल वाट मय मे धर्मके इन दगरूपी के लिए किसी भी धर्म मे कोई भेद नहीं है। मनु जी के धर्म के दश लक्षण, पद्मपुराण के यति धर्म और जैनधर्म के दश यतिधर्म परस्पर मे एक ही है। इन दिनो मे जैन भाई यथाशक्य व्रत पीपव उपवास आदि तप क्रिया का भी अनुष्ठान करते हैं। इन पर्यो के दिनो मे जैन समाज में एक उत्साह छाया रहता है, और जैन मन्दिर धर्मस्थान तथा स्वाध्याय भवन जनता से खचाखच भरे रहते है। अनतचतुर्दशी के दिन किसी किसी स्थान पर विराट् जलूस भी निकाला जाता है। ____श्वेताम्वर सम्प्रदाय का पyपण पर्व और दिगम्बर सम्प्रदाय का दशलक्षण पर्व परिपूर्ण हिंसा के विरुद्ध जैन जाति का सामूहिक अभियान है। अत प्राचीनकाल से जैन इन दिनो मे अन्य प्रकार की हिसा कसाई खाने आदि भी बंद करवा देते है। सम्राट अकबर ने तो आचार्य हीरविजय सूरीश्वर के उपदेश से प्रभावित होकर अपने साम्राज्य में इन दिनों में हिंसा बन्द करवा दी थी। इसी प्रकार प्राज भी भारत के कितने ही प्रान्तो मे सम्वत्सरी को हिमा बन्द रहती है। अष्टान्हिका पर्वः-तथा आयंबिल-ओली पर्वः-दिगम्बर सम्प्रदाय

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