Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sushilmuni
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 268
________________ २५२ जन धर्म शुद्धि और धार्मिक रूप से तपस्या, ब्रह्मचर्य, प्रात्मज्ञान (लक्ष्मी) तथा श्रात्मा गुद्धि दीपावली भी भारत का प्रसिद्ध तथा लोकव्यापी त्योहार है। तो भी दीपावली का ऐतिहासिक उद्गम रूप विवरण किमी ग्रथ मे उपलब्ध नहीं होता है। किन्तु श्वेताम्बर' आगमो और दिगम्बर पुराणोरे में इस नम्बल में विस्तृत उल्लेख पाया जाता है। प्राशय दोनो का एक है। श्रमण महावीर के निर्वाण के समय नव लिच्छवि और नव मल्लिगजात्रो ने पोपत्र बन कर रचा था। कार्तिक अमावस्या का दिन था । रात्रि के समय भगवान् महावीर का निर्वाण हो गया। उस समय राजानो ने आध्यात्मिक ज्ञान के मूर्य महावीर के अभाव मे रत्नी के प्रकाश से उस स्थान को देदीप्यमान किया था। परम्परागत उमी प्रकार जनता दीप जलाकर उस परम जान की उपासना कर प्रेरणा प्राप्त करती है, इसी का नाम दीपावली है। यही कारण है कि दीपावली पर्व जनो के लिए महत्त्वपूर्ण पर्व है। सलूनो रक्षा बन्धन-ब्राह्मण लोगो के हाथो मे राग्वियाँ बाँचते समय, इस पर्व का महत्त्व तथा इतिहास प्रतिपादक इलोक पत्रा करते है, जिसका प्राशय हे कि "जिम राखी से दानवो का इन्द्र महाबली बलिराजा बांधा गया उससे मैं तुम्हे बाँधता हूँ, अडिग अोर अडोल होकर मेरी रक्षा करो।"3. बलिराजा की कथा वामानवतार के प्रसग मे उद्धृत अवश्य हो गई है, किन्तु इससे रक्षा बधन के महत्त्व का अनुभव नहीं मिलता है। जैन साहित्य मे इसी पर्व के सम्बन्ध में कया अत्यन्त प्रसिद्ध है। जैन सानो से घृणा और द्वेप रखने वाले बली को महाराज पद्म से उपकृत रूप से वरदान पूर्ति के निमित्त सात दिन का राज्य मिल गया था, अकस्मात् अकम्पनाचार्य अपने सात सौ शिष्यो सहित उधर या निकले, बलि को बदला लेने का अवसर प्राप्त हुआ। उसने मुनि सघ को एक वाड़े मे घेर कर पुरुषमेव यज्ञ मे बलि करने की ठानी। एमे सकट काल मे एक वैक्रिय लब्धिधारी मुनि विष्णुकुमार से प्रार्थना की गई कि आप ही इस मुनि मघ पर आये सकट को दूर कीजिए। नपस्या मे लीन विष्णुकुमार मुनि, मुनि वर्ग की रक्षा निमित्त नगर मे आये और अपने भाई पद्मराज १. कल्पसूत्र । २. हरिवंश। ३. येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबली। तेन त्वामपि बध्नामि रक्ष मा चल मा बल ॥

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