Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sushilmuni
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 249
________________ जैन धर्म की विशेषताएँ जैन धर्म की वैज्ञानिकता--पिछले प्रकरणो मे जैन धर्म की मान्यताएँ मक्षेप में बतलाई जा चुकी है। ध्यानपूर्वक उन्हे पढने से जैन धर्म मे, अन्य धर्मों की अपेक्षा जो विशेपताएँ है, उनका आभास मिल सकता है। किन्तु उनकी ओर विगेप स्पसे ध्यान आकर्षित करने के लिए उनका पृथक् उल्लेख कर देना ही उचित होगा। तत्त्व का जान तपस्या एव साधना पर निर्भर है। सत्य की उपलब्धि इतनी सरल नहीं है कि अनायास ही वह हाय लग जाय । जो निष्ठावान् माधक जितनी अधिक तपस्या, ग्रार साधना करता है, उसे उतने ही गुह्य-तत्त्व की उपलब्धि होती है। पूर्ववर्ती तीर्थकरो की बात छोड दे और चरम तीर्थकर भगवान् महावीर के ही जीवन पर दृष्टिपात करे तो स्पष्ट विदित होगा कि उनकी तपस्या और साधना अनुपम और असाधारण थी। भ० महावीर साढे बारह वर्षों तक निरन्तर कठोर तपश्चर्या करते रहे। उस असाधारण तपश्चर्या का फल भी उन्हे असाधारण ही मिला। वे तत्वबोध की उस चरम सीमा का स्पर्श करने में सफल हो सके, जिसे साधारण साधक प्राप्त नही कर पाते । वास्तव मे जैनधर्म के सिद्वान्तो मे पाई जाने वाली खूवियाँ ही उनका रहस्य है । जैन मान्यताएँ यदि वास्तविकता की

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