Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sushilmuni
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 242
________________ २२४ जैन धर्म चम्पा के दधिवाहन, और मगध के श्रेणिक राजा, चेटक के दामाद थे। यह मभी राजा जैन धर्म के अनुयायी थे। राजा उदयन ने तो भगवान् के निकट दीक्षा ग्रहण की थी। श्रेणिक और कूणिक-इतिहासप्रसिद्ध मगधाधिपति विम्बसार, जैन माहित्य मे श्रेणिक नाम से भी प्रसिद्ध है। उनकी गाथाएँ जैन साहित्य मे प्रसिद्ध है। श्रेणिक के पुत्र सम्राट् कूणिक भी भगवान् के परम भक्त थे। कूणिक के पुत्र उदयन ने भी जैन धर्म की ही गरण गही थी। काशी-कौगल के अठारह लिच्छवी, और मत्ली राजानो ने भगवान् महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाया था। इससे प्रतीत होता है कि यह सब राजा जैन धर्म से प्रभावित थे। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त--चन्द्रगुप्त जैनधर्म के अनुयायी थे । भद्रबाहु स्वामी के निकट, मुनि दीक्षा अगीकार करके मैमूर (दक्षिण) गये । श्रमण-बेलगोला की गुफा मे अात्मसाधना की। इनके मत्री चाणक्य भी जैनवर्मी थे और जैन श्रावक गणी के पुत्र थे। सम्राट अशोक---अशोक चन्द्रगुप्त के पौत्र थे। उन्होने अहिसा की जो सेवा की है, वह प्रसिद्ध है। "अर्ली फेथ आफ अशोक" नामक पुस्तक के अनुसार अशोक ने अहिमा विषयक जो नियम प्रचारित किये, वे बौद्धो की अपेक्षा जैनो के साथ अधिक मेल खाते थे। पशु-पक्षियो को न मारते, निरर्थक जगलो को न काटने, और विशिष्ट तिथियो एव पर्वदिनो में जीवहिमा बद रखने आदि के आदेश जैन धर्म से मिलते है। सम्राट सम्प्रति--सम्प्रति अशोक के पौत्र थे । यह एक बार युद्ध मे विजय प्राप्त करके खुशी-खुशी माता के पास पहुँचे। देखा, माता के चेहरे पर प्रसन्नता के बदले, आँग्यो मे प्रॉमू है। कारण पूछने पर माता ने वनलाया-- नरमहार करके प्राप्त की गई विजय, सच्ची विजय नहीं। सच्ची शान्ति अहिसा के द्वाग ही प्राप्त की जा सकती है। इत्यादि उपदेश सुन कर मम्प्रति ने प्रख्यात जैन मुनि आर्य सुहस्ती मे जैनधर्म अगीकार किया। सम्राट् सम्प्रति ने अनार्य देशो में जैन धर्म के प्रचार के उद्देश्य मे, जैनधर्माराधको के लिए धर्मस्थानो की व्यवस्था कन्याई थी। अनार्य प्रजा के उत्थान के लिए सम्प्रति ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उनने धर्मप्रचारक भेजकर जैनधर्म की शिक्षाएं प्रमारित की। अनेक विद्वानों का

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