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चारित्र और नीतिशास्त्र
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२० “परोपकाराय सता विभूतय' अर्थात् सत्पुरुपो का सर्वस्व परहित के लिए ही होता है, ऐसी उनकी जीवन नीति हो ।
२१ लब्धलक्ष्य हो, अर्थात् अपने जीवन के प्रशस्त लक्ष्य को प्राप्त करने वाला हो।
__ जिस गृहस्थ के जीवन मे उल्लिखित विशेषताए आ जाती है, उसका जीवन आदर्श गृहस्थ-जीवन हो जाता है। तभी वह श्रावधा-धर्म को अगीकार करने और उसका समचित रूप से पालन करने में समर्थ होता है।
गहस्थधर्म जैन शास्त्र का विधान है--"चारित्त धम्मो।" अर्थात "चारित्र ही धर्म है।" चारित्र क्या है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए कहा गया है
___ "असुहादो विणिवित्ती, सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं"
अर्थात् “अशुभ कर्मो से निवृत्त होना और शुभ कर्मो मे प्रवृत्त होना, चारित्र कहलाता है । वस्तुत. सम्यक्-चारित्र या सदाचार ही मनुष्य की विशेषता है। सदाचारहीन जीवन गन्धहीन पुष्प के समान है।
चारित्र धर्म के नियम गृहस्थ वर्ग और त्यागी के लिए पृथक्-पृथक् वतलाये गए है । गृहस्थ-वर्ग के लिए बतलाए गए व्रतो का अर्थात् श्रावक धर्म का, यहा मक्षिप्त स्वरूप प्रस्तुत किया जाता है।
अणुव्रत अणुव्रत का अर्थ है छोटा व्रत
१ अहिंसाणुव्रत-पहला व्रत स्थूल प्राणातिपात विरमण अर्थात् जीवो की हिंसा से विरत होना है। संसार म दो प्रकार के जीव है, स्थावर और त्रस । जो जीव अपनी इच्छा अनुसार स्थान बदलने में असमर्थ है, वे स्थावर कहलाते है । पृथ्वीकाय, अप्काय (पानी), अग्निकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, यह पाच प्रकार के स्थावर जीव है । इन जीवो की सिर्फ स्पर्गेन्द्रिय ही होती है। अतएव इन्हे एकेन्द्रिय जीव भी कहते है।
सुख-दुख के प्रसग पर जो जीव अपनी इच्छा के अनुसार एक जगह से दूसरी जगह पाते है, जो चलते-फिरते और बोलते है, वे त्रस जीव है । इन त्रस जी वो मे दो इन्द्रियो वाले, कोई तीन इन्द्रियो वाले, कोई चार इन्द्रियो वाले, कोई