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जैन धर्म सघ छिन्न-भिन्न हो गया, श्रुति परम्परा से चलने वाले श्रुत का बहुत सा भाग विच्छिन्न हो गया । बड़े-बडे श्रुतधर, अनेक साधु, काल के गाल मे समा गये ।
___ भद्रवाहु स्वामी ने दश आगमो पर निर्गुक्ति रची, ऐमा जैन परम्परा में प्रसिद्ध है। इसके पश्चात् कोई श्रुतकेवली अर्यान् सम्पूर्ण श्रुतधर नही हुआ, तथापि दोनो परम्परामो मे अनेक प्रभावशाली, अच्यात्मनिष्ठ, सिद्धान्त के मार्मिक जाता, संयम परायग और प्रभावक आचार्यों का क्रम चलता रहा है, जिसमे से कुछ का परिचय साहित्य के प्रकरण ने दिया जायगा। शेष आचार्यों के परिचय के लिए ऐतिहासिक ग्रथो का अवलोकन करना चाहिए।
गुणेहि साहू अगुणेऽहि साहू, गिहाहि साहू गुगमञ्चसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो राग दोसेहिं, समो स पुज्जो॥
गुणो से साधु होता है, और अगुणो से असाधु । सद्गुणो को ब्रहण करो, और दुर्गुणो को छोड़ो। जो अपनी आत्मा द्वारा अपनी आत्मा को जानकर राग और द्वेष मे समभाव रखता है, वह पूज्य है।