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सम्यग्ज्ञान
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उक्त छह द्रव्यो में से काल के अतिरिक्त पाच द्रव्य अस्तिकाय? कहलाते है, क्योकि वे अनेक प्रदेगो के पिण्डरूप है । काल द्रव्य प्रदेश-प्रचय रूप न होने के कारण अस्तिकाय नही कहलाता।
जीव द्रव्य चेतन और, शेष अचेतन है । पुद्गल द्रव्य मूर्त' रूप, रस, गध, स्पर्श वाला है और शेष पाच अमूर्त है । जीव और पुद्गल द्रव्य और सक्रियचार द्रव्य क्रियाहीन है । समस्त लोक मे व्याप्त होने के कारण उनमे गतिक्रिया सम्भव नही है। धर्मास्तिकाय, अवर्मास्तिकाय और आकाश एक-एक अखण्ड पिण्ड है, शेप द्रव्य ऐसे नहीं है।
५ जीवद्रव्य----जीव का असाधारण गुण, जिसके कारण वह अन्य द्रव्यों से पृथक् सिद्ध होता है, चेतना है। चेतनावान् जीव अनन्त है, प्रत्येक गरीर में पृथक-पृथक् जीव है, जीव का अपना कोई आकार नही तथापि वह जब जिस शरीर मे होता है उसी के आकार का और उसी के बराबर होकर रहता है । एक जीव के असंख्य प्रदेश-अविभक्त अश होते है, और वे प्रकाश की तरह सकोच-विस्तारगील है। हाथी मर कर चिऊटी के पदार्थ मे जन्म लेता है, तो प्रदेश स्वभावत सिकुड कर चिऊँटी के शरीर मे समा जाते है ।
ज्ञाता, द्रप्टा, उपयोगमय, प्रभु, कर्ता, भोक्ता, बद्ध और मुक्त यह सब जीव के विशेपण है । भगवान् महावीर कहते है --"हे गौतम ! ८ जीव इन्द्रियो के द्वारा नहीं जाना जा सकता, क्योकि वह अमूर्त है। अमूर्त होने से वह नित्य भी है।"
____ "हे गोतम | जीव' न लम्वा है, न छोटा, न गोल, न तिकोना, न
१. नन्दी सूत्र, सूत्र ५८ । २ पोग्गलत्यिकाय, रूविकाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, श० ७, उ० १०, ३ अवट्ठिए निच्चे, नन्दी, सूत्र ५८ । ४ उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० ८। ५. उवोगलक्खणे जीवे, भगवती श०२ उ०१० ६. प्रदेश सहार-विसर्गाभ्यां, प्रदीपवत्, तत्त्वार्थ सूत्र ५, १६ राजप्रश्नीय
--सूत्र ७४, ७ उत्तराध्ययन अ० २८ गा० ११ ८ उत्तराध्ययन अ० १४, गा० १९, ९. आचारांग अ० १।