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जैन धर्म
३ अर्य शून्य नाम, जैसे वाद्यध्वनि, खासी, छोक आदि ।
२. स्थापनानिक्षेप - - किसी वस्तु म ग्रन्य वस्तु का प्रारोप करना स्थापनानिक्षेप है । जैसे—- राजा की मूर्ति या उसका चित्र भी राजा कहलाता है । यद्यपि उम मूर्ति या चित्र मे राजा का कोई गुण नही है, तथापि उसमे राजा का आरोप किया जाता है जब कोई राजा की मूर्ति को राजा कहता है तो समझना चाहिए कि वह स्थापना निक्षेप है ।
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स्थापनानिक्षेप के लिए प्राचीन युग मे काष्ठ, मृत्तिका, वस्त्र, प्रस्तर पत्र आदि पर चित्र बना कर ग्रथवा अन्य प्रकार से किसी एक वस्तु मे दूसरी वस्तु का आरोप किया जाता था । ग्राज भी मूर्ति या स्टैचू आदि वनाये जाते है । ३ द्रव्यनिक्षेपः -- जो पहले राजा था, अथवा भविष्य मे राजा वनने वाला है, वर्तमान मे नही है, उसे भी राजा गव्द से व्यवहृत किया जाता है । इस प्रकार भूतकालीन या भविष्यत्कालीन पर्याय का वर्तमान मे आरोप करना द्रव्यनिक्षेप कहलाता है ।
४ भावनिक्षेपः -- जो मनुष्य राज्य कर रहा है, वह भी राजा कहलाता है | इस प्रकार वर्तमान पर्याय को लक्ष्य में रखकर जव शब्द का प्रयोग किया जाता है, तो उसे भावनिक्षेप कहते हैं । जब व्युत्पत्तिनिमित्त अथवा प्रवृत्तिनिमित्त से वर्तमान में पूरा अर्थ घटित होता है, तभी वह भावनिक्षेप कहा जा सकता है ।
प्रकृत प्रस्तुत और अविवक्षित अर्थ का निराकरण करके प्रकृत प्रस्तुत, और विवक्षित अर्थ का विधान करना निक्षेपविधि का प्रयोजन है ।
जहा कही, “महावीर” शब्द ग्राया कि श्राप भगवान् महावीर को ही समझ ले तो बहुत बार अनर्थ होने की सम्भावना है । इस अनर्थ से बचने के लिए अगर ग्राप निक्षेपविधि से " महावीर" शब्द का विश्लेषण कर डालें, और समझ लें कि वक्ता का नाम - महावीर, स्थापना - महावीर, द्रव्य महावीर, और भाव महावीर मे से किस महावीर से अभिप्राय है, तो श्राप सही अभिप्राय समझ सकेगे, और अनर्थ से वच जाएगे। इसी उद्देश्य से जैन शास्त्रो मे निक्षेपों का विधान किया गया है ।
स्मरण रहे कि चारो निक्षेपो मे से भावनिक्षेप को ही महत्वपूर्ण एवं सार्थक स्वीकार किया गया है ।