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अतीत की झलक
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इन दोनो धर्मो ने और उनकी संस्थानो ने विश्व में अहिंसा प्रचार कार्य का बहुत वडा अनुष्ठान रचा है। दोनो श्रमण संस्कृति के शुद्ध मूलाधार रहे है । आज भी बौद्ध समाज मे जैनधर्म के प्रति श्रद्धाभावना है ।
सात निन्हव और अन्य विपक्षी
१. भगवान् महावीर के केवल ज्ञान के १४ वर्ष पश्चात् बहुरत सम्प्रदाय के स्थापक जमाली निन्हव का नाम आता है। आज तो इस सम्प्रदाय का नाम ही शेष है ।
२ १६ वर्ष बाद, जीव के प्रदेशो को लेकर, चतुर्दश पूर्वधारी प्राचार्य वसु के शिष्य तिष्यगुप्त ने एक बहुत वडा वितण्डावाद खडा किया था ।
३ महावीर निर्वाण के २१४ वर्ष पश्चात् श्रव्यक्तवादी अषाढाचार्य ने; ४ २२० वर्ष बाद समुच्छेदवादी महागिरि के प्रशिष्य और कौडिण्य के शिष्य श्वमित्र ने साधारण बातो पर प्रपच उठाकर, सघ मे फूट डालने की कोशिश की थी।
५ २२८ वर्ष बाद द्वेऋियवादी महागिरि के प्रशिष्य और धनगुप्त के शिष्य गगाचार्य ने भी इसी प्रकार का प्रपच खडा किया था ।
६. ५४४ वर्ष पश्चात्, त्रिराशिवादी श्री गुप्त के शिप्य रोहगुप्त ने, और
७ ५८४ वर्ष पश्चात् प्रभद्रवादी गोष्ठा महिल ने साधारण सी बातो पर गुप्त र प्रश्वमित्र के समान फूट डालने का प्रयास किया था, परन्तु सघ अटूट रहा । फूट स्वय फूट गई। तत्पश्चात् इन्होने अपने मत खडे किये ।
महावीर सघ मे सात निन्हवो ने भयकरतम फूट डालने का प्रयास किया था । किन्तु सघ का सौभाग्य रहा कि फूट फल न सकी, और सातो निन्हवो को परास्त होना पड़ा ।
सचेल अचेल -- भगवान् महावीर के सघ मे जो सबसे बडी खटकने वाली बात थी सचेल और अचेल की विवादास्पद गुत्थी ।
इसका मूल कारण है पार्श्वनाथ के साधु सचेल थे और महावीर का बल अचेल होने की ओर था । जिसका समाधान पाश्वपात्यिक केशी कुमार श्रमण को, महावीर संघ के प्रथम गणवर, गौतमस्वामी के द्वारा दिया गया था ।
याम, चार और पांच - गौतमस्वामी ने चार याम की जगह पॉच याम सप्रतिक्रमण, रात्रि दिवस की व्यवस्था का जितना तर्कपूर्ण उत्तर दिया, उतनी