Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 17
________________ परमाणुओं में ये अल्फा (Alpha ) कण भरे पड़े हैं । हमारे शास्त्रों की परिभाषा में यह वहा जायगा कि पारा और सोना भिन्न-भिन्न पदार्थ नहीं हैं बल्कि पुद्गल द्रव्य की दो भिन्न-भिन्न पर्यायें हैं अतएव इनवा परस्पर परिवर्तन असम्भव बात नही है । आज वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को साक्षात् करके दिखा दिया है, यद्यपि व्यापारिक दृष्टि से इस प्रयोग को सफल नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस विधि से बनाया गया सोना बहुत महँगा पड़ता है । यदि पानी की एक नन्ही बूंद को काटकर दो खण्ड कर दिये जायें और उन दो खण्डों को काटकर ८ खण्ड और इसी प्रकार ४ के ८, ८ के १६, १६ के ३२ करते चले जायें तो कुछ समय पश्चात् पानी की एक इतनी नन्ही-मी बूंद रह जायेगी कि जिसके ग्रागे खण्ड करना संभव नहीं होगा । इस प्रत्यन्त नन्हीं बूंद को पानी का मोलीक्यूल (Nolecule) या जैन शास्त्रों की परिभाषा में स्कन्ध कहते हैं । यह ग्राजकल का एक सर्वसिद्ध तथ्य है कि हाइड्रोजन को जलाने से पानी बन जाता है । पूर्ण विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि जन्म के एक स्कन्ध में दो परमाणु हाइड्रोजन के और एक परमाणु आक्सीजन का होता है । किया गया है अभी जिस नन्हीं-से-नन्ही बूंद का वर्णन उसको अगर आगे काटने की और चेष्टा की जाती है तो जल का अस्तित्त्व ही मिट जाता है और हाइड्रोजन व प्राक्सीजन अलग-अलग हो जाते हैं । दूसरे शब्दों में जल का

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