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है तो वह न केवल इस जहरीली धूल मे अपनी रक्षा करती है वरन् उमके थनों में कोई ऐसा यन्त्र लगा है जो उन धूल कणों को दूध में जाने से रोकता है। इस प्रकार उस जहर को भोले शकर की तरह वह स्वय हजम कर लेती है और अपने दूध को दूपित न होने देने के कारण उमसे अपने बच्चों (दूध पीने वालों) की रक्षा करती है । इस ममाचार से हमारी दृष्टि में गाय का महत्व और उमका अादर और भी अधिक बढ़ जाता है। * (देखिये 'कल्याण' अगस्त १९७०)
अमेरिका जैसे देश में गाय के दूध की खपत ४ लीटर प्रति व्यक्ति है और दूध में पानी मिलाने की सजा मौत है । हमारे देश मे जिसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि यहां कभी दूध की नदियां बहती थी, दूध की खपत प्रति व्यक्ति १ तोले से भी कम है। इसके कई कारण हैं-एक तो यह कि हमारी सरकार विदेशी मुद्रा कमाने के लिये गाय के मांस को विदेशों मे निर्यात करनी है जिससे हमारे देश में पशुधन की बहुत कमी हो गई है और दूसरा कारण है कि निकम्मे से निकम्मा दूध भी इतना महंगा है कि वह जन साधारण की पहुंच से बाहर है, जिसके कारण हमारे देश में चाय का प्रचलन बहुत बढ़ गया है । कोई-कोई तो दिन में दस-बारह बार चाय पान करते हैं। चाय पान विप-पान के समान ही है। चाय में केफीन (Cu ffein) नाम का जो मादक द्रव्य पाया जाता है
* रूसी वैज्ञानिकों ने गाय के सम्बन्ध में यह भी खेज को है कि यदि उसका गोबर घरा के छनों पर लीप दिया जाय तो एटमबम का दूषित विकिरण मकान के अन्दर नहीं घुसता।