Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 78
________________ ७ पानी अथवा जल लोक में यह कहावत प्रसिद्ध है 'जैसा खावे अन्न वैमा होवे मन । जैसा पीवे पानी वैमी बोले बानी ।' विज्ञान की दृष्टि में सबसे उत्तम जल उस कुयें का माना गया है जिसका पानी निरंतर खिचता रहता है । इसका मुख्य कारण यह है कि कुयें के जल को छानने की क्रिया प्रकृति करती है। जहां बडे-बड़े वाटर वर्म (Water works) हैं वहाँ जाकर आप देखेंगे तो मालूम होगा कि जिम जल को पीने योग्य बनाया जाता है वह जल कई तालाबों में होकर प्राता है, जिन्हें मैटिलमैंट टैक्स (Settlement Tanks) कहते हैं। इन टैकों में एक में रेत भरी रहती है, एक में कंकड़ भरे रहते हैं, एक में कोयला भरा रहता है, इत्यादि । इन वस्तुओं में होकर जब पीने का पानी जाता है तो सारी अशुद्धियाँ वही छूट जाती हैं। यह विधि मनुष्य ने पानी को साफ करने की निकाली है। किन्तु कुयें को धरातल पर जो पानी आता है वह पृथ्वी के अन्दर ऐसी अनेक तहों में होकर प्राता है जहाँ किसी तह में कंकड़, किसी तह में रेत, किमी तह में चूना आदि अनेक पदार्थ पाये जाते हैं । यह क्रिया नितान्त प्राकृतिक है और यह हम अच्छी तरह से जानते हैं कि प्राकृतिक क्रियानों की तुलना में हमारी समस्त कृत्रिम विधियाँ पोच (हलकी) हैं। प्रतएव प्रकृति द्वारा छना हुग्रा जल जो कुत्रों में मिलता है उसका मुकाबला वाटर वर्क्स (IVater works) का पानी नहीं कर सकता । हाँ, यह प्राव

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