Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 79
________________ श्यक है कि जिम नये कुयें का जल पीना प्रारम्भ किया जाय उसके जल को सेनिटरी इन्जिनियर (Sanitary Engineer) मे परीक्षा करवा लेना चाहिये कि उसमें कोई हानिकारक लवण (Salta अथवा बीमारियों के सूक्ष्म कीटाणु (Bac. teria) तो नहीं पाए जाते। यद्यपि अाजकल वाटर वर्स (Water works में जिन विधियों से जल को स्वच्छ किया जाता है वह बहुत ही उच्चकोटि की हैं और घर पर इतनी स्वच्छता लाना अशक्य ही है। बीमारी के कीटाणों को नाश करने के लिये उममें फिटकरी और क्लोरीन (Chlorine) का पानी मिलाते हैं, फिर भी पानी को लाने वाले नल जिन गन्दे से गन्दे स्थानों में होकर पाते हैं उसके कारण और चमडे के वाशर (Washer) के समर्ग के कारण वह पानी त्यागी वृनियों के लिये पीने के योग्य नहीं कहा जा सकता। जिन व्यक्तियो ने नल के पानी का त्याग कर रखा है उनको मवसे बड़ा एक लाभ यह होता है कि वे महा अपवित्र और दूषित बाजार में बिकने वाले मभी पदार्थों से उनका पिण्ड छूट जाता है, अर्थात् इन पदार्थों को खाकर जो शारीरिक हानि उनको उठानी पड़ती थी उमसे वे सहज ही बच जाते हैं । इमलिये जहां स्वास्थ्यकर कुाँ का ताजा पानी उपलब्ध हो वहां हमें उसके मुकाबले में नल के पानी को श्रेष्ठना (Preference) नहीं देना चाहिये । हैंडपम्प का पानी भी कुऐं के जल के समान ही है, किन्तु उसमें भी चमड़े का वाशर लगा रहता है । कहीं-कहीं

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