Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 97
________________ ΞΕ तारक विश्व का जन्म हुआ । हाइट्रोजन गैन का एक बहुत बड़ा धधकता हुआ बबूला अकस्मात् फट गया और उसका सारा पदार्थ चारों दिशाओं में दूर-दूर तक छिटक पड़ा और आज भी वह पदार्थ हम से दूर जाता हुआ दिखाई दे रहा है । ब्रह्माण्ड की सीमा पर जो क्सर (Quasar ) नाम के पिण्डों की खोज हुई है जो सूर्य ने भी १० करोड़ गुणा अधिक चमकीले हैं, हम से इतनी तेजी से दूर भागे जा रहे हैं कि इनसे आकस्मिक विस्फोट के सिद्धान्त की पुष्टि होती है । ( गति ७०,००० से १५०,००० मील प्रति सेकिट) तु भागने की यह क्रिया एक दिन समाप्त हो जायगी और यह सारा पदार्थ पुनः पीछे की ओर गिरकर एक स्थान पर एकत्रित हो जायगा और विस्फोट की पुनरावृत्ति होगी। इस सगृणं त्रिया मे ८० अरव वर्ष लगेगे और इस प्रकार के विस्फोट बाल तक होते रहेंगे। जैन धर्म की भाषा में इसे परिणमन की मज्ञा दी गई है । इसमें पट्गुणी हानि वृद्धि (Si। soidal variation) होती रहती है । दूसरा प्रमुख सिद्धान्त सतत् उत्पति का मिलान है जिसे परिवर्तनशील अवस्था का सिद्धान्त (Theory of steady state) भी कहा जाता है । इसके ग्रनुसार यह एक घाम के खेत के समान है जहाँ पुराने घाग के तिनके म रहते है और उनके स्थान पर नये तिनके जन्म लेते रहते हैं । परिणाम यह होता है कि धान के खेल की प्रकृति सदा एकमें बनी रहती है यह सिद्धान्त जैन धर्म के सिद्धान्त मे अधिक मेल खाता है, जिसके अनुसार इस जगत का न तो

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