Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 99
________________ ६१ सम्पूर्ण रूप से वस्तु स्थिति का वर्णन नहीं करता । ("Astronomers know far two little to make a choice among theories of the Universe and that no theory is adequate at the moment ") इस प्रसंग में संसार के महान वैज्ञानिक प्रो० प्राइन्सटाइन का सिद्धान्त हम पृष्ठ २६ पर दे चुके हैं, जिसके अनुसार यह संसार अनादि अनन्त सिद्ध होता है । पूरे लेख का निष्कर्ष इस प्रकार है- महान ग्राकस्मिक विस्फोट सिद्धान्त के अनुसार इस ब्रह्माण्ड का प्रारम्भ एक ऐसे विस्फोट के रूप में हुआ, जैमा ग्रातिशवाजी के अनार में होता है । अनार का विस्फोट तो केवल एक ही दिशा में होता है । यह विस्फोट चारों दिशाओं में हुया और जिस प्रकार विस्फोट के पदार्थ पुन उसी बिन्दु की ओर गिर पड़ते हैं, इस विस्फोट में भी ऐसा ही होगा। सारा ब्रह्माण्ड एन अण्डे के रूप में संकुचित हो जायगा । पुन विस्फोट होगा और इस प्रकार की पुनरावृति होती रहेंगी। इस सिद्धान्त के अनुसार भी ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति शून्य में से नही हुई । पदार्थ का रूप चाहे जो रहा हो, इसका अस्तित्व अनादि ग्रनन्त है । दूसरा सिद्धान्त सतत् उत्पत्ति का है। इसकी तो यह मान्यता है ही कि ब्रह्माण्ड रूपी चमन अनादिकाल से ऐसा ही चला ग्रा रहा है और चलता रहेगा । इस सिद्धान्त को आइन्सटाइन का आशीर्वाद भी प्राप्त है । नैव जगत् उत्पत्ति के सम्बन्ध में जैनियों का सिद्धान्त गोलहों ग्राने पूरा उतरता है ।

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