Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 93
________________ ये तीनों ही बातें ओजोनोम्पियर में पूरी उतरती हैं। नरक की मिट्टी के सम्बन्ध में शास्त्रों का उल्लेख है कि यदि यह मिट्टी मध्य लोक में लाई जावे, तो उसकी दुर्गन्ध मे प्राधे कोस की दूरी तक के जीव मर जायें। प्रोजोन गैस की दुर्गन्ध से भी छोटे मोटे जीव मर जाते हैं । पचास मील की ऊँचाई के पश्चात् प्रायनोस्फियर नामक चतुर्थ स्तर का प्रारम्भ होता है। इमी सर से टकराकर रेडियो की विद्युत लहरें एक देश से दूर देशों में जा उतरती हैं। जिम प्रकार शास्त्रों में वर्णित नरकों में भिन्न-भिन्न गहराइयों में नारकियों के बिल बने हुये हैं, उसी प्रकार यह प्रायनोस्फियर भी अनेक वलयों (Layers) में बटा हुआ है जिन्हें D,E,F इत्यादि वलय नाम दिये गये हैं। इसके ऊपर केननी हीवमाइइ (Kenelly. Heavesicle) और एपल्टन (Appleton) नाम की तह हैं । एपल्टन तह की ऊंचाई लगभग २५० मोल है। यहाँ की वायु का विघटन (lonisation) हो चुका है। इस वायु से माम नहीं लिया जा सकता और प्रागे चलकर लगभग १००० मील की ऊंचाई पर वान-लन (Van-aller) पट्टी (Belt) है, जहाँ की गर्मी से परमाणुनों का हलवा (Pasma) बन गया है। यहाँ भी जीवन सम्भव नहीं है । इम पट्टी में यदि भूल से कोई हवाई जहाज फंस जाय, तो वह वही चक्कर काटता रहेगा। एक प्रकार से वह भंवर में फँस जाता है। __ अपोलो ११ व १२ जो चाँद की यात्रा को गये थे उन्हें लौटते समय किसी स्थान पर कुछ ऐमो

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