Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 73
________________ वहां वनस्पति के सेवन से आंखों की ज्योति घटती है । वनस्पति के प्रयोग से अनेक तरह के चर्म रोग उत्पन्न होते हैं, इत्यादि । (५) अनेक प्रकार की पुष्टिकारक औषधियों के साथ शुद्ध घी का सेवन करने से प्रौषधिया शरीर मे घुलमिल जाती हैं, इसके विपरीत यदि वे ही प्रोपधियां वनस्पति घी के साथ खाई जावें तो उल्टे दस्त लग जाते हैं। (1) असली घी की खुशबू और जायका अत्यन्त मनमोहक है, जबकि वनम्पति में न तो कोई खुशबू है पौर न जायका ही अच्छा है । वनस्पति में तला हुआ पदार्थ गर्म-गर्म खा लेने पर तो केवल गले को ही खराब करता है विनु कुछ देर रखा हुआ पूरी, परावठा तो बिलकुल ही खाने योग्य नही रहता। प्रश्न यह उठता है कि शुद्ध वनम्पति तेल जब घी से भी अधिक पुष्टिकारक है तो तेल में निकल और हाइड्रोजन मिलाकर एक नया पदार्थ बनाने की क्या प्रावश्यकता थी ? वनस्पति घी के सम्बन्ध में यह दावा बिलकुल भूठा है कि इसमें बना हुअा भोजन अधिक स्वादिष्ट और पुष्टिकारक होता है। यदि यह बात मत्य होती तो छः रुपये किलो के वनस्पति घी को छोड़कर तेरह रुपये किलो के घी को खाने की कई मूर्वता क्यों करता ? वास्तव में वमम्पति घी के सस्तेपन और घी से मिलते-जुलते रंग के कारण गरीब आदमी को भी यह सन्तोष हो जाता है कि 'मैं' भी बडे प्रादमी की तरह घी का सेवन कर रहा हूं। यही एकमात्र इसके प्रचार का कारण है।

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