Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 66
________________ होता । अतएव यह आवश्यक है कि जिस प्रकार हाथ की चक्की का पिमा हुआ आटा व्यवहार में लाना हितकर है उमी प्रकार हाथ का यह कुटा हुप्रा चावल व्यवहार में लाना चाहिये और नकली चावल से सावधान रहना चाहिये । ३. दाल भोजन का तीसरा जरूरी अंग है दाल । दालों के अन्दर एक पदार्थ होता है जिसे प्रोटीन (Protein) कहते हैं । जिम प्रकार फिगी भवन का निर्माण बिना ई ट या पत्थरों के नही हो सकता उसी प्रकार बिना प्रोटीन के किसी भी शरीर की रचना नहीं हो सकती अर्थात् प्रोटीन रूपी ईटों से हमारे शरीर का भवन बना है। जीवन की दनिक क्रियानों में जो रात-दिन शरीर के अन्दर टूट-पट होतो रहती है, उसकी मरम्मत के लिये भी प्रोटीन की आवश्यकता होती है। म साहारियों के भोजन में तो उत्तम प्रकार का प्रोटीन मभी प्रकार के मांस में मिल जाता है किन्तु शाकाहारियों के लिये दाल ही प्रोटीन का प्रमुख साधन है। यद्यपि जीव विज्ञान शास्त्रियों का कहना है कि दालों का प्रोटीन घटिया किस्म का है । भगवान का शुक्र है कि दालों में मिलावट की बात अभी सुनने में नहीं आई। गाय का दूध विशेषकर श्यामा गाय का,भोजनों में सबसे उत्तम पदार्थ है। डाक्टरों की भाषा में इसको Most Perfect food बतलाया गया है, अर्थात् सुखी जीवन के

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