Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 65
________________ धनिये में घोड़े की लीद, काली मिर्च में पपीते के मूखे हाए बीज इत्यादि मिलावटें बिलकुल आम हो गई हैं बीमारों को दिया जाने वाला साबूदाना भी नकली आ गया है । दवाइयां और इन्जेक्शंस भी नकली विक रहे हैं । ऐमी मूरत में चावल भी इस रोग से कैसे बच सकता था ? टेपियोका (Tapitvcn) नकली चावल बनने लगे । ममझ में नहीं पाता कि कोई भला आदमी क्या खाये क्या पिए ? फिर भी चावल के व्यवहार में एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है। धान के छिलके को मशीनों द्वाग साफ करके और पालिश करके जो चावल बाजार में बिकता है उसे हगिज नहीं खाना चाहिये । धान के छिलके के नीचे भूरे रंग का एक पदार्थ चावल पर चढा रहता है जिसे विटामिन , कहते हैं । मशीन में माफ किये हुए चावल से विटामिन B, बिलकुल माफ या नाट हो जाता है । इम चावल को खाने से बगी-बेरी (Beri-ui का रोग हो जाता है। यह रोग बंगाल में अधिकांग होता है, जहां पालिश किये हुये चावल का अधिक व्यवहार है । बेरीवेरी रोग में जटगग्नि बिलकुल नष्ट हो जाती है और शरीर पर सूजन आ जाती है। यह गेग शरीर में विटामिन ', की कमी से उत्पन्न होता है और बड़ा ही कप्टमाध्य है। घान से चावल बनाने की पुरानी विधि यह थी कि घर की स्त्रियां धान को प्रावली में डालकर लकड़ी के मूमल से उसे कूटती थीं । ऐमा करने से धान का छिलका तो पृथक हो जाता था किन्तु विटामिन B, की तह उममे चिपकी र ती थी से चावन को खाने से बेरी बेरी का रोग नहीं

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