Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 50
________________ ४२ चार कहते हैं, पांच या तीन कोई नहीं कहता। रिलेटिविटी व कॉमन सैन्स (Relativity and Common sence) नामक पुस्तक में आइन्सटाइन का एक त्रिको गमितीय समीकरण (Trignom trical equation) उद्धृत किया है जिसमें पचास Term हैं । इस को कागज पर प्लॉट करने से मनुष्य की नाक बन जाती है। आइन्सटाइन का कहना यह है कि दुनियां में कहीं भी कोई व्यक्ति यदि उस समीकरण को प्लाँट करेगा तो उसको वही नाक मिल जायेगी ; उसमें व्यक्तिगत विभिन्नता नहीं होगी। अतएव उस नाक का एकरूपीय वर्णन गणित का केवल वही एक समीकरण है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाषा की और अपनी स्वयं की अपूर्णता के कारण मनुष्य जो कुछ कहता है वह भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के हाथ में पड़कर झग? का कारण बन जाता है । अतएव यदि हम अपनी बात को सर्वोपरि सम्पूर्ण बनाना चाहते हैं तो उममें सभी दृष्टिकोणों का समावेश होना चाहिये । भिन्नभिन्न दृष्टिकोणों से किया या विवेचन सम्पूर्ण होता है और इसे ही अनेकान्त कहते हैं। ____समन्तभद्र आचार्य ने एक स्थान पर लिखा है कि संसार के सभी पाखण्डों के समूह का नाम जैनधर्म है। यहां पर 'पाखण्ड' शब्द का विशेष अर्थों में प्रयोग किया गया है। केवल एक ही दृष्टिकोण से कही गई बात पर जो दुराग्रह करता है उसे पाखण्डी कहते हैं। भारत के षड्दर्शनों में जो विभिन्नता पाई जाती है वह भी इसी प्रकार की है। प्रत्येक दर्शन किसी एक दृष्टिकोण से सत्य की खोज करने में सफल

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