Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 54
________________ व्यक्त नहीं किया जा सकता । पाइन्सटाइन की भाषा में इसका उत्तर कोई त्रिकालज्ञ ही दे सकता है जो समस्त ब्रह्माण्ड को युगपद् देख रहा है। ___ इसी प्रकार एक समानान्तर प्रश्न पूछा जा सकता है कि हिमालय पहाड़ कहां है ? चीन में रहने वाला उत्तर देगा कि दक्षिण में है, लंका निवासी उतर देगा कि उत्तर में है, किन्तु इसका भी निश्चयात्मक उत्तर नहीं दिया जा सकता। उत्तर किसी न किसी अपेक्षा से होगा । अभिप्राय यह है कि यदि किसी वस्तु का पूर्ण निरूपण करना हो तो सभी अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर करना होगा। जब वैज्ञानिक जगत में सापेक्षवाद की धूम मची तो एक बार आइन्सटाइन से उनकी पत्नी ने पूछा, मैं सापेक्षवाद (Theory of relativity) को जानना चाहती हूँ। उन्होंने कहा मैं कैसे समझाऊं ? इसका सीधा उत्तर यह है कि जब एक मनुष्य एक सुन्दर लड़की से बात कर रहा हो तो उसे एक घण्टा एक मिनट जैसा लगेगा और उसे ही एक गर्म चूल्हे पर बैठा दिया जाय तो एक मिनट एक घण्टे के बराबर लगने लगेगा।' वस्तु अनन्तधर्मी है, उसे अनन्त अपेक्षाओं से ही समझना होगा। 'तत्वार्थ सूत्र' के पञ्चम अध्याय सूत्र ३२ में इसी बात को यों कहकर व्यक्त किया है 'अपितानपित सिद्धेः' वस्तु की सिद्धि मुख्य और गौण की अपेक्षा से होती है । सारांशतः हम कह सकते हैं कि अनेकान्त संशयवाद या

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