Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 58
________________ ५ . पहले वर्णन कर चुके हैं, उसके अनुसार पुद्गल का एक पिण्ड पुद्गल के दूसरे पिण्ड को आकर्षित करता है । इस पोद्गलिक संसर्ग के कारण ही अशुद्ध जीवात्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती है। जीवात्मा का जब इस पुद्गल से पूर्ण विच्छेद हो जाता है तब वह शुद्ध हो जाती है। जिस प्रकार हाइड्रोजन गैस का गुब्बारा हाथ में से छूट जाने पर सीधा ऊपर की ओर जाता है और चलता ही रहता है और यदि वह सूर्य की गर्मी से फटा नहीं तो उस ऊँचाई तक पहुंचेगा जहां कि वायुमण्डल की तहों (Layers ) में केवल हाइड्रोजन ही हाइड्रोजन है । यहां पर इतना और बतला देना आवश्यक है कि हाइड्रोजन गैस हवा से १४ गुना हलकी होती है। यदि एक बोतल में पारा, पानी और पेट्रोल एक साथ भर दिये जायें और उन्हें खूब जोर से हिला-चला दिया जाय तो कुछ देर तो वे मिले-जुले से दिखाई देंगे किन्तु कुछ देर रक्ग्वे रहने के पश्चात् पारे की तह सबसे नीचे हो जायगी, उसके ऊपर पानी की तह होगी और कि पेट्रोल उन तीन में सबसे हलका है इसलिये उसकी तह सबसे ऊपर होगी। इसी प्रकार जिस हवा से हम सांस लेते हैं वह नाइट्रोजन, आक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन-डाइ-आक्साइड और अन्य बहुत-सी गैसों का सम्मिश्रण है । हाइड्रोजन सबसे हलका होने के कारण वायुमण्डल की ऊपर की तहों में पाया जाता है और हाइड्रोजन का गुब्बारा उस ऊंचाई पर पहुंचकर रुक जाता है जहां उसके चारों ओर हाइड्रोजन ही हाइड्रोजन है। इसी प्रकार की क्रिया जीवात्मा के साथ होती है । कह सकते हैं कि जीवात्मा

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